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________________ बत्तीस योग संग्रह -1 3 गुरुदेव! मैंने कल वस्त्रों का प्रतिलेखन नहीं किया। किसी के दोषों की आलोचना अन्य किसी से नहीं कहनी चाहिए। तुम जैनधर्म छोड़ हमारा धर्म अपना लो। नहीं तो हम तुझे मार देंगे। नहीं भाई. मैं अपना धर्म नहीं रोड सकता। निरपलाप आपत्सु दृढ़धर्मिता प्रतिलेखन - गुरुदेव! आपके कपड़े कितने गन्दे है? शरीर कितना मैला है। अध्ययन ओह! चला नहीं जा रहा है। गोचरी लाने के लिए किसी से नहीं कहूंगा। आज तप कर लेता। मसारी शोभा नहीं करता है। निराश्रित तप शिक्षा निष्पतिकर्मता-शरीर शोभा त्याग आज मेरा तेला है। पर मैं यह किसी से नहीं कहूंगा। महाराजा यह सब वस्त्र आपके लिए हैं। तितिक्षा नहीं, मेरे लिए एकाहत अलोभता उपसर्ग सहन करना ज्ञातता-अज्ञात तप 10 गुरुदेव मेरा घर काफी दूर है। आप मंगलपाठ देने वहाँ पचाने? शुचि-आत्मशुद्धि " मोक्ष ठीक है, चलो चलता हैं। पुनर्जन्म कर्म फल प्राप्त होता हैy आत्मा शाश्वत है। आर्जव-सरलता ध्यान करते हुए। सम्यग् दृष्टि
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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