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________________ मोहनीय कर्म बाँधने के तीस स्थान कहे गए हैं। यथा - १. पहला मोहनीय स्थान है कि जो कोई भी व्यक्ति, स्त्री-पुरुष आदि त्रस जीवों को जल में प्रवेश कराता है और पैरों को नीचे दबाकर जल में ही उन्हें मारता है, वह महामोहनीय कर्म का बंध करता है। || २. दूसरा मोहनीय स्थान है कि जो कोई किसी मनुष्य आदि के शिर को गीले चर्म से वेष्टित (लपेटता) करता है और निरन्तर तीव्र अशुभ पापमय कार्यों में लिप्त रहता है, वह महामोहनीय कर्म का बंध करता है। तीसरा मोहनीय स्थान है कि जो कोई किसी जीव के मुख को हाथ से बन्द करता है और # गला दबाकर मारता है, वह महामोहनीय कर्म का बंध करता है। चौथा मोहनीय स्थान है कि जो कोई अग्नि को जलाता है अथवा अग्नि का महान आरम्भ करता है | और किसी मनुष्य-पशु-पक्षी आदि त्रस जीवों को उसमें जलाता है अथवा अत्यन्त धुएँ से युक्त | अग्नि-स्थान में प्रवेश कराकर धुएँ से उनका दम घोंटता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता । पाँचवाँ मोहनीय स्थान है कि जो कोई किसी जीव के उत्तम अंग यानि शिर पर मुद्गर आदि से प्रहार (चोट) करता है अथवा अति संक्लेशयुक्त चित्त से उसके माथे को फरसा आदि हथियार से काटकर मार डालता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। छठा मोहनीय स्थान है कि जो कपट करके किसी मनुष्य का घात करता है और कुटिल हँसी हँसता है तथा किसी मंत्रित फल आदि को खिलाकर अथवा डंडे से मारता-पीटता है यानि | प्रहार करता है, वह महामोहनीय कर्म का बंध करता है। | ७. सातवाँ मोहनीय स्थान है कि जो गूढ यानि गुप्त पापों का आचरण करने वाला मायाचार का व्यवहार करते हुए अपनी माया को छिपाता है, असत्य बोलता है तथा सूत्रार्थ का अपलाप करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। आठवाँ मोहनीय स्थान है कि जो अपने द्वारा किए ऋषिघात आदि घोर दुष्कर्म को दूसरों पर लादता है अथवा अन्य व्यक्ति के द्वारा किए गए दुष्कर्म को किसी दूसरे पर आरोपित करता है कि यह दुष्कर्म तुमने किया है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। नौवां मोहनीय स्थान है कि जो असत्य को जानता हुआ भी सत्य नहीं बोलता यानि यह बात असत्य है ऐसा जानता हुआ भी जो सभा में सत्यामृषा (जिसमें सत्यांश कम और असत्यांश अधिक है ऐसी) भाषा का प्रयोग करता है तथा लोगों से सदा कलह करता रहता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 तीसवां समवाय 55555%%%%% • 128 Samvayang Sutra %当当当当当当当当当当当当当当当
SR No.002488
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages446
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size18 MB
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