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ऊपर उठकर तत्पश्चात् चारण ऋद्धिधारी मुनियों (साधकों) की नन्दीश्वर, रुचक आदि द्वीपों में जाने के लिए तिरछी गति होती है।
事
Ratanprabha has many charming spots. From this land a little above of seventeen thousand yojanas, after soaring high the ascetics having extra ordinary power of flying on toes, travel towards Nandishavar, Ruchak etc. islands taking moving in oblique direction.
१२० - चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो तिगिंछिकूडे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ते । बलिस्स णं असुरिंदस्स रुअगिंदे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।
असुरेन्द्र असुरराज चमर का तिगिंछि कूट नामक उत्पात पर्वत है जिसकी ऊँचाई सत्रह सौ इक्कीस (१७२१) योजन कही गई है। सत्रह सौ इक्कीस (१७२१) योजन ऊँचा असुरेन्द्र बलि का रुचकेन्द्र नामक उत्पात पर्वत कहा गया है।
The height of the Tingichhikut Utpat Mountain of Chamerendra, King God of Asuras has been said of seventeen thousand and twenty one yojanas. Seventeen thousand and twenty one yojanas high is Ruchkendra Utpat Mountain belongs to Asurendra Bali has been described.
१२१ - सत्तरसविहे मरणे पण्णत्ते । तं जहा - आवीईमरणे ओहिमरणे आयंतियमरणे बलायमरणे वसट्टमरणे अंतोसल्लमरणे तब्भवमरणे बालमरणे पंडितमरणे बालपंडितमरणे छउमत्थमरणे केवलिमरणे वेहाणसमरणे गिद्धपिट्टमरणे भत्तपच्चक्खाणमरणे इंगिणिमरणे पाओवगमणमरणे ।
सत्रह प्रकार के मरण निरूपित हैं । यथा - १. आवीचिमरण (विच्छेद या व्यवधान रहित मरण), २. अवधिमरण (मर्यादा सहित मरण), ३. आत्यन्तिक मरण (नारकादि के वर्तमान आयुकर्म को भोगकर मरना और मरकर भविष्य में उस आयु को भोगकर नहीं मरना, ऐसे जीव के वर्तमान भव का मरण), ४. वलन्मरण (अव्रतदशा में मरण), ५. वशार्तमरण (इन्द्रियविषयों से पीड़ित या उनके वशीभूत होकर मरना), ६. अन्तः शल्य् मरण (मन में किसी प्रकार के शल्य रखकर मरण), ७. तद्भव मरण (वर्तमान भव में जिस आयु को भोगा जा रहा है, उसी भव के योग्य आयु को बाँधकर मरना ), ८. बालमरण ( मिथ्या-दृष्टि और असंयमी जीवों का मरण), ९. पंडितमरण (संयमी सम्यग्दृष्टि जीव का मरण), १०. बालपंडित मरण (देशसंयमी पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक व्रती मनुष्य या तिर्यञ्च पंचेन्द्रियों का मरण), ११. छद्मस्थ मरण (छद्मस्थों अर्थात् केवलज्ञान उत्पन्न होने के पूर्व बारहवें गुणस्थान तक के जीवों का मरण), १२. केवलि मरण (केवलज्ञान के धारक अयोगिकेवली के सर्वदुःखों का अन्त करने वाला मरण), १३. वैहायस मरण (गले में फाँसी लगाकर या किसी वृक्षादि से अधर लटक कर मरना ), 17th Samvaya
समवायांग सूत्र
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