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________________ - मात्र जीव पाए जाते हैं । कल्पना कीजिए एक पल्योपम में कुल संख्या ६५५३६ हैं । उनमें २०४८ जीव सास्वादन गुणस्थान में पाए जा सकते हैं। मिश्र गुणस्थान में जीवों की संख्या अधिक से अधिक ४०६६ पाई जा सकती है । अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में अधिक से अधिक १६३८४ जीव पाए जा सकते है । देशविरत गुणस्थान में ५१२ जीव पाए जा सकते हैं। यद्यपि दूसरा और तीसरा गुणस्थान अशाश्वत् हैं, तदपि उन गुणस्थानों में यदि अधिक से अधिक पाए जाएं तो उपर्युक्त शैली से असंख्यात पाए जा सकते हैं। छठे गुणस्थान से लेकर १४ वें गुणस्थान तक कुल जीव संख्यात ही हैं, क्योंकि संज्ञी मनुष्य संख्यात हैं, उनमें सिवाय संयत मनुष्य के अन्य जीव नहीं पाए जाते । पंचम और तीसरे गुणस्थान में संज्ञी मनुष्य और तियंच दोनों गति के जीव पाए जाए जाते हैं। दूसरे से लेकर चौथे गुणस्थान तक चारों गति के जीव पाए जाते हैं। प्रमत्त संयतों में मनःपर्यवज्ञानी स्वल्प हैं, अवधिज्ञानी विशेषाधिक, मति-श्रुत परस्पर तुल्य विशेषाधिक हैं। इसी प्रकार सातवें अप्रमत्त गुणस्थान तक समझना चाहिए । आठवें में उपशमक अवधिज्ञानी १४, और क्षपक २८ पाये जा सकते हैं।' मनःपर्यवज्ञानी उपशमक १०, और क्षपक २० पाए जा - सकते, हैं। ... उपशम श्रेणी में यदि निरन्तर जीव प्रवेश करें तो आठ समय तक कर सकते हैं, तदनु नियमेन अन्तर पड़ जाता है, जैसे- पहले समय में जघन्य १ २ ३ यावत् १६ प्रवेश कर दूसरे , , , , , , ॥ २४ ॥ ॥ ॥ ॥ तीसरे , , , , " चौथे , " " " " " पांचवें , , , , , , , ४२ ॥ ॥ ॥ छठे , , , , , , , ४८ , , , , सातवें , , , , , , , ५४ , , . " आठवें . , , , , , , ५४ , , , , यदि पहले समय में ५४ उपशम श्रेणी में प्रविष्ट हो जाएं तो अवश्य अन्तर (विरह) पड़ जाता है। साकारोपयोगी जीवों का अल्पबहुत्व सबसे स्वल्प मनःपर्यवज्ञानी, उनसे अवधिज्ञानी असंख्यातगुणा, उनसे मतिज्ञानी तथा श्रुतज्ञानी परस्पर तुल्य विशेषाधिक हैं, उन सबसे विभंगज्ञानी असंख्यातगुणा, उन सबसे केवलज्ञानी अनन्त गुणा, (सिद्धों की अपेक्षा) उनसे समुच्चय ज्ञानी विशेषाधिक, उन सबसे मति-श्रुत अज्ञानी परस्पर तुल्य अनन्त गुणा, उनसे समुच्चय अज्ञानी विशेष अधिक हैं। पहले और तीसरे गुणस्थान में तीन अज्ञान ही पाए जाते हैं, शेष में ज्ञान । सकते १. उवसामगा चोदस, खवगा अठावीस | २. उवसामगा दस, खवगा वीस । (धवला जीवस्थान)
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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