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________________ ५० साकारोपयोग है और जब पर्यायरहित सिर्फ अखण्ड वस्तु को सामान्य बोधरूप व्यापार से पहण करता है, तब उसे अनाकारोपयोग कहते हैं। अब केवलज्ञानी के उपयोग के विषय में निरूपण किया जाता है। १. केवलज्ञान और केवलदर्शन दोनों ही पारमार्थिक प्रत्यक्ष हैं, जिसके मल-अवरण-विक्षेप का सर्वथा अभाव हो गया, उसमें साकारोपयोग और अनाकारोपयोग कैसे घटित होता है ? इसका समाधान यूं किया जाता है-जब केवली सचेतन और अचेतन द्रव्य का प्रत्यक्ष करता है, तब उसे अनाकारोपयोग अर्थात् केवल दर्शनोपयोग कहते हैं, किन्तु जब उन्हीं वस्तुओं के आन्तरिक स्वरूप का प्रत्यक्ष करता है, तब उसे साकारोपयोग कहते हैं । २. जब केवली द्रव्यात्मक लोकालोक का प्रत्यक्ष करता है, तब उसे अनाकारोपयोग कहते हैं और जब वही लोकालोक ज्ञान में साकार बन जाता है, तब उसे साकारोपयोग कहते हैं । ३. केवली जब वस्तु का सिर्फ प्रत्यक्ष ही करता है, तब वह अनाकारोपयोग होता है, किन्तु जब वस्तु का अनुभव पूर्वक प्रत्यक्ष किया जाता है, तब उसे साकारोपयोग कहते हैं । ४. केवली जब जीव या अजीव, दूर या समीप में रहे हुए मूर्त या अमूर्त, रूपी या अरूपी, एक या अनेक, नित्य या अनित्य, वक्तव्य या अवक्तव्य, ऐन्द्रियक या मानसिक, गुप्त या प्रकट, विभु या एक देशी, ऊर्ध्व-मध्य या पाताल लोक, कारण या कार्य, अन्दर या बाहिर, सूक्ष्म या बादर, संसारी या मुक्त, पृथ्वी, भवन या विमान, आविर्भूत या तिरोहित इनमें से किसी का या सबका सामान्य प्रत्यक्ष करता है, तब उसे अनाकारोपयोग कहते हैं, किन्तुं जब इनमें से किसी एक का विशेष प्रत्यक्ष करता है, तब उसे साकारोपयोग कहते हैं। ५. केवली जब द्रव्य, क्षेत्र और काल का प्रत्यक्ष करता है, तब केवलदर्शन होता है, किन्तु जब भाव का प्रत्यक्ष करता है, तब केवलज्ञान में उपयोग होता है । 'यह परमाणु है' यह केवलदर्शन से प्रत्यक्ष किया, किन्तु यह परमाणु किस वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श का स्वामी है ? जघन्यगुण वाला है ? यावत् अनन्तगुणवाला है ? केवली यह सब केवलज्ञान के द्वारा जानता है। ६. पृथ्वी आदि किसी भी पदार्थ का विभिन्न आकारों, विभिन्न हेतुओं, विभिन्न दृप्रान्तों, विभिन्न उपमाओं, विभिन्न वर्गों, विभिन्न संस्थानों और विभिन्न विशेषणों से केवली जब प्रत्यक्ष करता है, तब केवलज्ञान से और जब इनके बिना प्रत्यक्ष करता है तब केवल दर्शन से। जब उपयोग साकार हो उठे, तब वह ज्ञान कहलाता है और जब 'अनाकारोपयोग होता है, तब उसे दर्शन कहते हैं । केवली के भी इन दोनों में से एक समय में एक ही उपयोग होता है, दोनों युगपत् नहीं होते, उपयोग का ऐसा ही स्वभाव है। केवली काल के एक अविभाज्य अंश, जिसे समय भी कहते हैं, उसे भी प्रत्यक्ष कर करता है, किन्तु एक समय के जाने हुए तथा देखे हुए को कहने में अन्तर्मुहुर्त लग जाता है । छद्मस्थ का उपयोग स्थूल होता है, वह अन्तर्मुहर्त में ही किसी ओर लगता है। हाँ, इतना अवश्य है, अनाकारोपयोग की अपेक्षा साकारोपयोग का काल संख्यात गुणा अधिक होता है, क्योंकि छद्मस्थ जीवों की किसी एक पर्याय को जानने में अधिक काल लगता है, जब कि अनाकारोपयोग स्वल्प समयों में भी लग जाता है, किन्तु केवली का अनाकार उपयोग एवं साकारोपयोग एक सामयिक भी होता है। इन दोनों का उत्कृष्ट काल-मान आन्तहितिक है। इससे अधिक कोई भी उपयोग अवस्थित नहीं रह सकता ।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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