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वर्णन है, 'सद्व्य लक्षणं, सत् क्या है ? उसका उत्तर दिया है-उत्पाद-यय-ध्रौव्ययुक्तं सत जिसमें ये तीनों हों, वह सत् कहलाता है, और जो सत् है, वही द्रव्य है । त्रिपदी का ज्ञान होने से ही पूर्वो का ज्ञान होता है । इस पूर्व में उक्त तीनों का विस्तृत वर्णन है।
____२. अग्रायणीयपूर्व- इसमें ७०० सुनय, और ७०० दुर्नय, पंचास्तिकाय, षड्द्रव्य एवं नवपदार्थ, इनका विस्तार से वर्णन किया है। - ३. वीर्यानुप्रवादपूर्व-इसमें आत्मवीर्य, परवीर्य, उभयवीर्य, वालवीर्य, पण्डितवीर्य, वालपण्डितवीर्य क्षेत्रवीर्य, भववीर्य और तपवीर्य का विशद वर्णन है।
४. अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व--इसमें जीव और अजीव के अस्तित्व तथा नास्तित्व धर्म का वर्णन है, जैसे जीव स्व द्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्व-भाव की अपेक्षा अस्तित्व रूप है। और वही जीव परद्रव्य परक्षेत्र, परकाल और परभाव की अपेक्षा से नास्तिरूप है। इसी प्रकार अजीव के विषय को भी जानना चाहिए।
५. ज्ञानप्रवादपूर्व-पांच ज्ञान, तीन अज्ञान का इसमें स्पष्कृतया वर्णन है। द्रव्याथिक नय और . पर्यायाथिक नय की अपेक्षा अनादि अनन्त, अनादि सान्त, सादि अनन्त और सादि सान्त विकल्पों का तथा पांच ज्ञान का वर्णन करने वाला यही पूर्व है, क्योंकि इसका मुख्य विषय ज्ञान है ।
६. सत्यप्रवादपूर्व-यह वचनगुप्ति, वाक्संस्कार के कारण वचन प्रयोग, दस प्रकार का सत्य, १२ प्रकार की व्यवहार भाषा, दस प्रकार के असत्य और दस प्रकार की मिश्र भाषा का वर्णन करता है। असत्य और मिश्र इन दोनों भाषाओं से गुप्ति और सत्य तथा व्यवहार भाषा में समिति का प्रयोग करना चाहिए । अभ्याख्यान, कलह, पैशुन्य, मौखर्य, रति, अरति, उपधि, निकृति, अप्रणति, मोष, सम्यग्दर्शन तथा मिथ्यादर्शन वचन के भेद से भाषा १२ प्रकार की है।
किसी पर झूठा कलंक चढ़ाना अभ्याख्यान, क्लेश करना कलह, पीछे से दोष प्रकट करने को या सकषाय भेद नीति वर्तने को पैशुन्य, धर्म अर्थ,कांम मोक्ष से रहित वचन को मौखर्य या अबद्धप्रलापवचन, विषयानुरागजनक वचन रति, दूसरे को हैरान परेशान करने वाले वचन को या आर्तध्यानजनक वचन को अरति, ममत्व-आसक्ति-परिग्रह रक्षण-संग्रह करने वाले वचन उपधि, जिस वचन से दूसरे को माया में फंसाया जाता है, या दूसरे की आँख में धूल झोंक कर अथवा बुद्धि विवेक को शून्य करके ठगा जाता है, वह निकृति, जिस वचन से संयम-तप की बात सुनकर भी गुणीजनों के समक्ष नहीं झुकता वह अप्रणति, जिस बचन से दूसरा चौर्यकर्म में प्रवृत्त हो जाए, उसे मोष, सन्मार्ग. की देशना देने वाले वचनको सम्यग्दर्शन वचन, कुमार्ग में प्रवृत्त कराने वाले वचन को मिथ्यादर्शन वचन कहते हैं । अर्थात् जो सत्य वचन के बाधक हैं, सावध भाषा है वह हेय है । सत्य और व्यवहार ये दो भाषाएं उपादेय हैं । इस प्रकार अन्य-अन्य जो भी सत्यांश हैं उनका मूल स्रोत यही पूर्व है।
___७. प्रारमप्रवाद पूर्व–इसमें आत्मा का स्वरूप बताया है आत्मा के अनेक पर्यायवाची शब्द हैं उनके अर्थों से भी आत्म-स्वरूप को जानने में सहुलियत रहती है। जैसे कि
१. तत्त्वार्थ सूत्र पंचम अध्ययन |