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________________ ३५. बुराई करते हैं, इसका अस्तित्व मिटाने के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं फिर भी वह अनेकान्तवाद समन्वय के बल से उन्हीं को भ्रातृत्व व मैत्रीभाव के सूत्र से बांध कर पारस्परिक वैमनस्य को मिटा देता है। विश्व में शान्ति स्थापन करने वाला यदि कोई सशक्त है तो वह अनेकान्तवाद ही है। अनेकान्तवाद चक्रवर्ती सम्राट् है और एकान्तवादी सब उसके अधीन में रहने वाले नरेश हैं। दृष्टिवाद की क्रमिक व्याख्या दृष्पिवाद एक दार्शनिक अंग है। उसका उपक्रम निम्न प्रकार से वर्णित है... १. आनुपूर्वी-इस के तीन भेद हैं- पूर्वानुपूर्वी, पच्छानुपूर्वी और यथातथानुपूर्वी। इनमें से यदि क्रमश: गणना की जाए, तो इतिवाद अंग १२वां सिद्ध होता है। यदि पच्छानुपूर्वी से गणना की जाए, तो दृष्टिवाद पहला ही अंग है । यथातथानुपूर्वी का अर्थ है-जैसे भी गणना की जाए, वैसे ही यहां दृष्टिवाद से प्रयोजन है, अन्य अंगों से नहीं। २. नाम-इसमें अनेक दृष्टियों और अनेक दर्शनों का सविस्तार वर्णन है, इसलिए इसका जो दृष्टिवाद नाम है, वह सार्थक एवं गुणसंपन्न है । ३.-प्रमाण दृष्टिवाद में अक्षर, पद, प्रतिपत्ति एवं अनुयोग, आदि संख्यात प्रमाण हैं और अर्थ की अपेक्षा अनन्त प्रमाण हैं। ४. वक्तव्यता-दृष्टिवाद में स्वसमय परसमय तथा उभयसमय की वक्तव्यता है । . ५. अर्थाधिकार- इसमें ३६३ मतों तथा अनेकान्तवाद का मुख्य विषय है। कहीं विषय वर्णन, कहीं खण्डन तथा कहीं समन्वय का उल्लेख है । दृष्टिवाद के मुख्य पांच अधिकार हैं, जैसे कि परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग पूर्वगत और चूलिका। यह क्रम दिगंबर परम्परा के अनुसार है, जब कि नन्दीसूत्र में पूर्वगत का तीसरा स्थान रखा गया है और अनुयोग का चौथा स्थान । परिकर्म के भेद दिगंबर परम्परा में पांच किए हैं, जैसे कि चन्दपण्णत्ति, सूर्यपण्णत्ति, जम्बूद्वीपपण्णत्ति, द्वीपसागरपण्णत्ति और विवाहपण्णत्ति । जब कि नन्दीसूत्र में सिद्धश्रेणिका परिकर्म आदि मूल सात भेद किए हैं और उत्तर ८३ भेद गिनाए हैं। - धवला और गोम्मटसार में अनुयोग के स्थान पर अनियोग पाठ मिलता है । दृष्टिवाद के अन्तर्गत उपर्यक्त दोनों ग्रंथों में 'पढमानियोग' पाठ दिया है, जब कि नन्दीसूत्र में 'अनुयोग' पाठ दिया है, फिर आगे उसके दो भेद किए हैं, मूल पढमानुयोग और गण्डिकानुयोग । दृष्टिवाद के अन्तर्गत २२ सूत्रों का कोई नामोल्लेख नहीं है। धवला की प्रस्तावना में नन्दीसूत्रगत २२ सूत्रावलियों का नामोल्लेख अवश्य किया है, किन्तु धवला में सूत्र के ८८ भेदों का नामोल्लेख अवश्य किया है। दिगम्बर परम्परा में चुलिका के पांच भेद किए है, जैसे कि १. जलगता-जल में गमन, जलस्तम्भन आदि के कारणभूत मंत्र-तंत्र और तपश्चर्यारूप अतिशय आदि का वर्णन है। २. स्थलगता-पृथ्वी के भीतर गमन करने के कारण भूत मंत्र-तंत्रों तथा तपश्चर्या और वास्तुविद्या भूमि सम्बन्धी दूसरे शुभाशुभ कारणों का वर्णन है ।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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