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________________ को जो स्वच्छ एवं निर्मल करने में निमित्त है। धर्म में लगाने वाला है और सभी प्रकार के दुःख से रक्षा करने वाला है, उसे शास्त्र कहते हैं। उनके शब्द निम्न लिखित हैं "शास्विति वागविधिविनिर्धातुः पापठ्यतेऽनुशिष्टयर्थः । अमिति पालनार्थे विपश्चितः सर्वशब्दविदाम् ॥ यस्माद्रागद्वेषोद्धृतचित्तान् समनुशास्ति सद्धर्मे । संत्रायते च दुःखाच्छास्त्रमिति निरुच्यते सनिः॥" प्रशमरति, श्लो० १८६-१८७। आचार्य समन्तभद्र ने शास्त्र का लक्षण बहुत ही सुन्दर बतलाया है, जो आप्त का कहा हुआ हो, जिसका उल्लंघन कोई न कर सकता हो, जो प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाण से विरुद्ध न हो, तत्व का उपदेषा हो, सर्व जीवों का हित करने वाला हो, और कुमार्ग का निषेधक हो; जिसमें ये छः लक्षण घटित हों, वह शास्त्र कहलाता है। उनके शब्द निम्न लिखित हैं, जैसे कि ____"प्राप्तोपज्ञमनुलंध्य-मदृष्टष्टविरुद्धकम् । तत्त्वोपदेशकृत्-सावं, शास्त्र कापथघट्टनम् ॥" यह श्लोक आचार्य सिद्धसेनदिवाकर के न्यायावतार में भी गृहीत है । अतः मुमुक्षुओं को उपर्युक्त लक्षणोपेत शास्त्रों के अध्ययन व अध्यापन, आत्म-चिन्तन, धर्मकथा, हित शिक्षा सुनने, उसे धारण करने संयम, तप और गुरु भक्ति में सदा प्रयत्न शील रहना चाहिए, क्योंकि शास्त्रीय ज्ञान धर्म-ध्यान का अवलम्बन है । शास्त्रीयज्ञान स्व-पर प्रकाशक होने से ग्राह्य एवं संग्राह्य है। सत् शिक्षा देने के कारण नन्दीसूत्र भी शास्त्र कहलाता है । शास्ता की प्रधानता से शास्त्र की प्रधानता हो जाती है। अर्थ को सूचित करने के कारण इसे सूत्र कहते हैं। जो तीर्थंकरों के द्वारा अर्थरूप में उत्पन्न होकर गणधरों के द्वारा प्रन्थ रूप में रचा गया है, उसे भी सूत्र कहते हैं । नन्दी-सूत्र का संकलन भी गणधरकृत अंगसूत्रों के आधर पर किया गया है। सूत्र को पकड़ कर चलने वाले व्यक्ति ही बिना पथभ्रष्ट । हुए संसार से पार हो जाते हैं । अथवा जिस प्रकार कि सूत्र (धागा) से पिरोई हुई सुई सुरक्षित रहती है, और बिना सूत्र के खो जाती है, वैसे ही जिसने निश्चय पूर्वक सूत्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया, वह संसार में भटकता नहीं, प्रत्युत शीघ्र ही सिद्धत्व को प्राप्त कर लेता है। इस दृष्टि से नन्दी शास्त्र को, सूत्र भी कहते हैं, क्योंकि इसमें ज्ञान का वर्णन है, ज्ञान से आत्मा प्रकाशवान होता है । जैसे भस्वर पदार्थ । अन्धेरे में गम नहीं होता, वैसे ही ज्ञान हो जाने से जीव संसार-अन्धकार में गुम नहीं होता। सूत्र-सक्तंसुप्तं इन शब्दों का प्राकृत में सुत्तं बनता है। सूत्र की संक्षिप्त व्याख्या ऊपर लिखी जा चुकी है । सूक्तं का अर्थ है-सुभाषित जो अरिहन्त के द्वारा प्रतिपादित अर्थ का आधार लेकर गणधरों ने व श्रुतकेवलियों ने अपने मधुर-सरस वर्णात्मक सुन्दर शब्दों में गून्था है। जिससे भव्य प्राणी जटिल शब्दाडम्बर में न पड़कर भावार्थ को शीघ्र समझ सकें। अत: आगमों को यदि सक्तं भी कहा जाए तो अनुचित न होगा। इस दृष्टि से नन्दीसत्र को नन्दीसूक्त भी कहा जा सकता है। ___ सुप्त के स्थान पर भी प्राकृत में सुत्त बनता है, इसका आशय है-जिस प्रकार सोए हुए व्यक्ति । के आस-पास वार्तालाप करते हुए भी उसे उसका ज्ञान नहीं होता, इसी प्रकार, व्यख्या, चूर्णि, नियुक्ति और साष्य के बिना जिसके अर्थ का बोध यथार्थ रूप से नहीं होता । अतः उसे सुप्त भी कह सकते हैं ।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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