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नन्दीसूत्रम्
तृतीय अनुयोग निरवसेसो- सर्व प्रकार नय-निक्षेप से पूर्ण, एस- यह श्रणुश्रोगे—अनुयोग में विही होइविधि होती है ।
सेतं अंगपट्ठि - यह अङ्गप्रविष्ट श्रुत है से सुयनाणं - यह श्रुतज्ञान है, से तं परोक्ख नाणंयह परोक्षज्ञान है, से त्तं नंदी - इस प्रकार यह नन्दीसूत्र सम्पूर्ण हुआ ।
भावार्थ - अक्षर १, संज्ञी २, सम्यक् ३, सादि ४, सपर्यवसित ५, गमिक ६ और अङ्गप्रविष्ट २, ये सात सप्रतिपक्ष करने से श्रुतज्ञान के १४ भेद हो जाते हैं ।.
आगम-शास्त्रों का अध्ययन जो बुद्धि के आठ गुणों से देखा गया है, उसे शास्त्र विशारद—जो व्रतपालन में धीर हैं, ऐसे आचार्य श्रुतज्ञान का लाभ कहते हैं
वे आठ गुण इस प्रकार हैं- शिष्य विनययुक्त गुरु के मुखारविन्दु से निकले हुए वचनों को सुनना चाहता है । जब शंका होती है तब पुनः विनम्र होकर गुरु को प्रसन्न करता हुआ पूछता है । गुरु के द्वारा कहे जाने पर सम्यक् प्रकार से श्रवण करता है, सुनकर अर्थ रूप से ग्रहण करता है । ग्रहण करने के अनन्तर पूर्वापर अविरोध से पर्यालोचन करता है । तत्पश्चात् 'यह ऐसे ही है' जैसा आचार्यश्री जी महाराज फर्माते हैं। उसके पश्चात् निश्चित अर्थ को हृदय में सम्यक् प्रकार से धारण करता है । फिर जैसा गुरु जी ने प्रतिपादन किया था, उसके अनुसार आचरण करता है ।
इसके पश्चात् शास्त्रकार सुनने की विधि कहते हैं
शिष्य मूक होकर अर्थात् मौन रहकर सुने, फिर हुंकार अथवा 'तहत्ति' ऐसा कहे । फिर बाढकार अर्थात् 'यह ऐसे ही है जैसा गुरुदेव फर्माते हैं ।' पुनः शंका को पूछे कि 'यह किस प्रकार है ? ' फिर प्रमाण, जिज्ञासा करे अर्थात् विचार-विमर्श करें। तत्पश्चात् उत्तरउत्तर गुण प्रसंग में शिष्य पारगामी हो जाता है । ततः श्रवण-मनन आदि के पश्चात् गुरुवत् भाषण और शास्त्र प्ररूपणा करे। ये गुण शास्त्र सुनने के कथन किये गये हैं ।
व्याख्या करने की विधि
प्रथम अनुयोग सूत्र और अर्थ रूप में कहे । दूसरा अनुयोग सूत्र स्पर्शिक नियुक्ति कहा गया है । तीसरे अनुयोग में सर्वप्रकार नय - निक्षेप आदि से पूर्ण व्याख्या करे । इस तरह अनुयोग की विधि शास्त्रकारों ने प्रतिपादन की है।
यह श्रुतज्ञान का विषय समाप्त हुआ । इस प्रकार यह अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य श्रुत का वर्णन सम्पूर्ण हुआ । यह परोक्षज्ञान का वर्णन हुआ। इस प्रकार श्रीनन्दीसूत्र भी परिसमाप्त हुआ ।
टीका - आगमकारों की यह शैली सदा काल से अविच्छिन्न रही है कि जिस विषय को उन्होंने भेद-प्रभेदों सहित निरूपण किया, अन्त में वे उसका उपसंहार करना नहीं भूले । इसी प्रकार इस सूत्र का