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________________ मान नहीं हो सकता । जैसे नन्दी में ५७ सूत्र हैं, उनमें से एक सूत्र में कितने पद हैं ? उनका ज्ञान होना भी आवश्यकीय है। ३. पदार्थ-जितने पद हों, उनका अर्थ भी जानना चाहिए। प्रत्येक पद का ज्ञान और उसके अर्थ का ज्ञान जब तक नहीं होता, तब तक आगे अध्ययन में प्रगति नहीं हो सकती, जैसे देवा-देवता, विभी, तं-उसको, नमसंति-नमस्कार करते हैं, जस्स-जिसका, धम्मे-धर्म में, सया-सदा मणोमन है, इस प्रकार पदों के अर्थ जानने का प्रयास करना पदार्थ है। ४. पदविग्रह-पदार्थ हो जाने के पश्चात् पदविग्रह करना, जैसे नन्दति नन्दयत्यारमानमिति नन्दी जो आत्मा को आनन्दित करता है, उसे नन्दी कहते हैं। यदि समस्तपद हों, तो उनका पदविग्रह करके अर्थ करना चाहिए । जो पदविग्रह सूत्र और अर्थ के अनुरूप हो, वैसा विग्रह करना, इस विधि से अर्थ बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है। १. चालना-पदविग्रह के अनन्तर मूलसूत्र पर या अर्थ पर शंका,-प्रश्न या तर्क करने का अभ्यास करना, जैसे प्रस्तुत सूत्र का नाम किसी प्रति में ह्रस्व इकार सहित लिखा होता है और किसी में दीर्घ ईकार सहित । वस्तुतः शुद्ध कौन-सा शब्द है, नन्दिः ? या नन्दी ? इनकी व्युत्पत्ति किस धातु से हुई है ? ये दोनों शब्द किस लिङ्ग में रूढ़ हैं । इस प्रकार शब्द विषयक प्रश्न करने को शब्द चालना कहते हैं । इस आगम को नन्दी क्यों कहते हैं ? नन्दी का और ज्ञान का परस्पर क्या सम्बन्ध है, इस प्रकार अनेक प्रश्न अर्थ विषयक किए जा सकते हैं, इसे अर्थ चालना कहते हैं । .. प्रसिद्धिः-प्रसिद्धि का अर्थ धारणा या समाधान भी होता है । शंका का समाधान करना प्रश्न का उत्तर देना, कभी शिष्य की ओर से प्रश्न होता है, उसका उत्तर गुरु देते हैं और कभी प्रश्न भी गुरु की ओर से तथा उतर भी गुरु की ओर से दिया जाता है। कभी प्रश्न गुरु की ओर से और उत्तर शिष्य की ओर से दिया जाता है । इसको प्रसिद्धि कहते हैं। जैसे पहले चालना में प्रश्न दिए हुए हैं, उन्हीं का यहां उत्तर देते हैं-नन्दि या नन्दी दोनों शब्द शुद्ध हैं। 'टुनदि' समृद्धौ धातु से इनकी निष्पत्ति हुई है। नन्दिः शब्द पुल्लिग है और नन्दी शब्द स्त्रीलिङ्ग है, दोनों का अर्थ भी एक ही है, किन्तु प्राचीन पद्धति में आगम के लिए नन्दी शब्द प्रयुक्त है, जो कि आर्ष है। हमें उसी परम्परा को स्थिर रखना है। जिनभद्रगणी जी ने विशेषावश्यक भाष्य में स्त्रीलिङ्ग में नन्दी शब्द का प्रयोग किया है, जैसे कि "मङ्गलमहवा नन्दी, चउब्विहा मंगलं च सा नेया। दम्वे तूर समुदो, भावम्मि य पंचनाणाइं॥" ___ इससे सिद्ध होता है कि दीर्घ ईकार सहित नन्दी ऐसा लिखना ही सर्वथोचित है । "आगमोदय समिति" द्वारा प्रकाशित मलयगिरि वृत्ति में नन्दीसूत्रम्, नन्दीवृत्तिः, नन्दीनिक्षेपाः इस प्रकार शब्द प्रयोग किए हए हैं। समस्तपद में भी दीर्घ ईकार सहित नन्दी का प्रयोग किया है। यदि भावनन्दी के अतिरिक्त नामनन्दिः, स्थापना नन्दी, द्रव्यनन्दिः इनका ह्रस्वइकार सहित पुल्लिग में प्रयोग किया जाए, तो कोई दोषापत्ति नहीं है । यह शब्द विषयक समाधान है। चिर काल से खोई हुई निजी अमूल्य निधि मिल जाने से व्यक्ति को जैसे असीम आनन्द की
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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