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________________ नन्दीसूत्रम् १. पृथगाकाशपद, २. केतुभूत, ३. राशिबद्ध, ४. एकगुण, ५. द्विगुण, ६. त्रिगुण, ७. केतुभूत, ८. प्रतिग्रह, ६. संसारप्रतिग्रह, १०. नन्दावर्त, ११. उपसम्पादनावर्त, यह उपसम्पादनश्रेणिकापरिकर्म श्रुत है। टीका- इस सत्र में उपसंपादनश्रेणिका परिकर्म का उल्लेख है-उवसंपज्जण-इसका अर्थ ग्रहण एवं अङ्गीकार है। असंजमं परियाणामि, संजमं उवसंपज्जागि-हां 'उवसंपज्जामि' का अर्थ ग्रहण करता हूं अर्थात् जो २ उपादेय हैं, उनकी श्रेणि में किस २ साधक को, क्या क्या उपादेय है, ग्राह्य है ? क्योंकि सभी साधकों की जीवन भूमिका एक सी नहीं होती, जो दृथिवाद के वेत्ता हैं, उनके पास जो कोई साधक आता है, उसके जीवनोपयोगी वैसा ही साधन बताते हैं, जिससे उसका कल्याण हो सके। संभव है, इसमें जितने भी कल्याण के छोटे-बड़े साधन हैं, उन सब का उल्लेख गभित हो। ६. विप्रजहत्श्रेणिकापरिकर्म मूलम्-से किं तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ? विप्पजहणसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पन्नत्ते, तंजहा २. पाढोग्रागा (मा) सपयाइं, २. केउभूग्रं, ३. रासिबद्धं, ४. एगगुणं, ५. दुगुणं, ६. तिगुणं, ७. केउभूअं, ८. पडिग्गहो, ६. संसारपडिग्गहो, १०. नन्दावत्तं, ११. विप्पजहणावत्तं, से तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे । छाया-अथ किं तद् विप्रजहच्छ्रे णिकापरिकर्म ? विप्रजहच्छ्णिकापरिकर्म एकादशविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा १. पृथकाकाशपदानि, २. केतुभूतम्, ३. राशिबद्धम्, ४. एकगुणम्, ५. द्विगुणम्, ६. त्रिगुणम्, ७. केतुभूतम्, ८. प्रतिग्रहः, ६. संसारप्रतिग्रहः, १०. नन्दावर्तम्, ११. विप्रजहदावर्तम्, तदेतद् विप्रजहच्छ णिकापरिकर्म । भावार्थ-वह विप्रजहत् श्रेणिकापरिकर्म कितने प्रकार का है ? विप्रजहत्श्रेणिकापरिकर्म ११ प्रकार का वर्णन किया गया है, जैसे १. पृथकाकाशपद, २. केतुभूत, ३. राशिबद्ध, ४. एकगुण, ५. द्विगुण, ६. त्रिगुण, ७. केतुभूत, ८. प्रतिग्रह, ६. संसारप्रतिग्रह, १०, नन्दावर्त, ११. विप्रजहदावर्त, यह विप्रजहत्-श्रेणिकापरिकर्म श्रुत है। टीका-इस सूत्र में विप्रजहत्श्रेणिका परिकर्म का उल्लेख है। जिसका संस्कृत में विप्रजहच्छ णिका शब्द बनता है, विश्व में जितने हेय-परित्याज्य पदार्थ हैं, उनका इसी में अन्तर्भाव हो जाता है। सभी साधक एक ही अवगुण से ग्रस्त नहीं हैं, जिस साधक की जैसी जीवनभूमिका है, उस भूमिका के अनुसार जो २ परित्याज्य हैं, उन सब का उल्लेख इसमें हो, ऐसी संभावना है। जैसे भिन्न २ रोगी के लिए भिन्न
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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