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________________ द्वादशाह-परिचय छाया-अथ किं तदवगाढ़श्रेणिकापरिकर्म ? अवगाढश्रेणिकापरिकर्म एकादशविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा ३. पृथगाकाशपदानि, २. केतुभूतम्, ३. राशिबद्धम्, ४. एकगुणम्, ५. द्विगुणम्, ६. त्रिगुणं, ७. केतुभूतम् ८. प्रतिग्रहः, ६. संसारप्रतिग्रहः, १०. नन्दावर्तम्, ११. अवगाढावर्तम्, तदेतदवगाढश्रेणिकापरिकर्म | ___भावार्थ-वह अवगाढश्रेणिकापरिकर्म कितने प्रकार का है ? अवगाढ़श्रेणिकापरिकर्म ११ प्रकार का है, जैसे - १. पृथगाकाशपद, २. केतुभूत, ३. राशिबद्ध, ४. एकगुण, ५. द्विगुण, ६. त्रिगुण, ७. केतुभूतम्, ८. प्रतिग्रहः, ७. संसारप्रतिग्रहः, १०. नन्दावर्त्तम्, ११. अवगाढावर्त्त, यह अवगाढ़श्रेणिकापरिकर्म है। ___टीका-इस सूत्र में अवगाढ़श्रेणिका परिकर्म का वर्णन है । सब द्रव्यों को जगह देना, यह आकाश द्रव्य का उपकार है। धर्मास्तिकाय, अधर्मस्तकाय जीवास्तिकाय, काल और पुद्गलास्तिकाय ये पांच द्रव्य 'आधेय हैं । इनको अपने में स्थान देना यह आकाश का कार्य है। जो द्रव्य जिस आकाश प्रदेश या देश में अवगाढ हैं, उनका सविस्तर वर्णन अवगाढश्रेणिका में होगा, ऐसा प्रतीत होता है । ५. उपसम्पादनश्रेणिकापरिकर्म मूलम्-से किं तं उवसंपज्जणसेणिपापरिकम्मे ? उवसंपज्जणसेणिप्रापरिकम्मे एक्कारसविहे पन्नत्ते, तं जहा १. पाढोप्रागा (मा) सपयाई, २. केउभूयं, ३. रासिबद्धं, ४. एगगुणं, ५. दुगुणं, ६. तिगुणं, ७. केउभूअं, ८. पडिग्गहो, ६. संसारपडिग्गहो, १०. नंदावत्तं, ११. उवसंपज्जणावत्तं, से तं उवसंपज्जणसेणियापरिकम्मे । ____छाया-अथ किं तदुपसम्पादनश्रेणिकापरिकर्म? उपसम्पादनश्रेणिकापरिकर्म एकादशविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा १. पृथगाकाशंगदानि, २. केतुभूतम्, ६. राशिबद्धम्, ४. एकगुणम्, ५. द्विगुणम्, ६. त्रिगुणम्, ७. केतुभूतम्, ८. प्रतिग्रहः, ६. संसारप्रतिग्रहः, १०. नन्दावर्त्तम्, ११. उपसम्पादनावर्त्तम्, तदेतदुपसम्पादनावर्त्तम् । ___ भावार्थ-वह उपसम्पादनश्रेणिकापरिकर्म कितने प्रकार का है ? उपसम्पादनश्रेणिकापरिकर्म ११ प्रकार का है, जैसे
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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