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द्वादशा-परिचय
उत्पन्न हुए महापुरुषों का उल्लेख है। शेष दस महापुरुषों में काकन्दी नगरी के धन्ना अनगार की कठोर तपस्या और उस के कारण शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्गों की क्षीणता का बड़ा मार्मिक और विस्तृत वर्णन किया गया है। इस में निम्न लिखित पद विशेष महत्त्व रखते हैं और ये पद आत्म विकास में प्रेरणात्मक हैं, जैसे कि परियागा-दीक्षा की पर्याय अर्थात् चारित्र पालन करने का काल परिमाण सुय परिग्गहाश्रतज्ञान का वैभव क्योंकि धर्मध्यान का आलंबन स्वाध्याय है, स्वाध्याय के सहारे से धर्मध्यान में प्रगति हो सकती है । तवोवहाणाई-जिस सूत्र का जितना तप करने का विधान है, उसे करते रहना । पडिमामो-भिक्षु की १२ पडिमाएं धारण करना, अथवा स्थानाङ्ग सूत्र के चौथे अध्ययन में चार प्रकार की पडिमाओं का धारण, पालन करना । उवसग्गा-संयम तप की आराधना से विचलित करने वाले परीषहों तथा उपसर्गों का समता के द्वारा सहन करना। संलेहणाओ-संलेखना करना (संथारा) इत्यादि साधु जीवन को विकसित करने वाले हैं। ये कल्याण के अमोव आय हैं, इन के बिना साधू जीवन नीरस है ।।सूत्र ५४॥
१० श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्र मूलम्-से किं तं पण्हावागरणाइं? पण्हावागरणेसु णं अछुत्तरं पसिण-सयं, अछुत्तरं अपसिण-सयं, अठ्ठत्तरं पसिणापसिण-सयं, तं जहा–अंगुट्ठ-पसिणाई, बाहुपसिणाइं, अदाग-पसिणाई, अन्नेवि विचित्ता विज्जाइ-सया, नाग-सुवण्णेहिं सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति ।
पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुयोगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जागो निज्जुत्तीग्रो, संखेज्जाम्रो संगहणोनो, संखेज्जाओ पडिवत्तीयो।
से णं अंगठ्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुप्रखंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइ पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा अखरा, अणंता गमा अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइमा जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जति, पन्नविज्जति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जति ।
से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया एवं चरण-करण परूवणा आघविज्जइ, से तं पण्हावागरणाइं ॥सूत्र ५५॥
छाया-अथ कानि तानि प्रश्नव्याकरणानि ? प्रश्नव्याकरणेषु-अष्टोत्तरं प्रश्न-शतम्,