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नन्दीसूत्रम्
अन्तकृद्दशा में परिमित वाचनायें, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्ति, संख्यात संग्रहणी और संख्यात प्रतिपत्तिएं हैं।
___ अङ्गार्थ से यह आठवां अङ्ग है । एक श्रुतस्कन्ध, आठ वर्ग, आठ उद्देशनकाल और आठ समूद्देशन काल हैं। पद परिमाण में संख्यात सहस्र हैं। संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय तथा परिमित त्रस और अनन्त स्थावर हैं । शारमत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिन प्रज्ञप्त भाव कहे गये हैं तथा प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन, और उपदर्शन किये जाते हैं । इस सूत्र का अध्ययन करने वाला तदात्मरूप, ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है । इस तरह उक्तअङ्ग में चरण-करण की प्ररूपणा की गयी है । यह अन्तकृद्दशा का स्वरूप है । ।सूत्र ५३॥
टीका-इस सूत्र में अन्तकृद्दशाङ्ग सूत्र का अवयवों सहित अवयवी का संक्षेप में वर्णन मिलता है। अन्तकृद्दशा का अर्थ है कि जिन नर-नारियों और निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थियों ने संयम-तप को आराधनासाधना करते हुए जीवन के अन्तिम क्षण में कर्मों का तथा भवरोग का अन्तकर कैवल्य होते ही निर्वाण पद प्राप्त किया उन पुण्य आत्माओं की जीवन चर्या का इस सूत्र में उल्लेख किया गया है। इस में आठ वर्ग हैं। पहिले और पिछले वर्ग में दस-दस अध्ययन हैं, इस दृष्टि से अन्तकृत् के साथ दशा शब्द का प्रयोग किया गया है। सूत्र कर्ता ने जो अंतकिरियानो पद दिया है, इस का भाव यह है कि जिन महात्माओं ने उसी भव में शैलेशी-चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त कर निर्वाण प्राप्त किया है अर्थात् वे आत्माएं कैवल्य प्राप्त कर जनता को धर्मोपदेश नहीं दे सकी, इसी कारण उन्हें अन्तकृत केवली कहा है। उक्त अङ्ग के वर्गों तथा अध्ययनों का निम्न प्रकार से ८ वर्गों में विभाजन किया गया है, जैसे
वर्ग-१ । २ । ३ । ४ । ५ ।६ । ७ ।८ ।
अध्ययन १० । ८ । १३ । १० । १० । १६ । १३ । १० । ' इस सूत्र में अरिष्टनेमि और महावीर स्वामी के शासन काल में होने वाले अन्तकृत केवलियों का ही वर्णन मिलता है। पांचवें वर्ग तक अरिष्टनेमि के शासन काल में नर-नारी यादव वंशीय राजकुमारों और श्रीकृष्णजी की अग्रमहेषियों ने धर्म साधना में अपने आप को झोंक कर आत्मा का निखार किया तथा निर्वाण प्राप्त किया। छठे वर्ग से लेकर आठवें तक सेठ, राजकुमार राजा श्रेणिक की महारानियों ने दीक्षित होकर घोर तपश्चर्या और अखंड चारित्र की आराधना करते हुए मासिक, अर्द्धमासिक संथारे में कर्मों पर विजय प्राप्त कर सिद्धत्व को प्राप्त किया, इस प्रकार उनके पावनचरित्र का वर्णन है। उन्होंने महावीर और चन्दन वाला महासती की देख-रेख में आत्म-कल्याण किया। इसमें प्रायः ऐसी शैली है कि एक का वर्णन करने पर शेष वर्णन उसी ढंग से है। जहां कहीं आयु संथारा, क्रियानुष्ठान में विशेषता हुई, उस का उल्लेख कर दिया है। सामान्य वर्णन सब का एक जैसा ही है। अध्ययनों के समूह का नाम वर्ग है । शेष वर्णन पूर्ववत् ही है ।सूत्र ५३।।