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________________ ३०२ नन्दीसूत्रम् १६. जीव ईश्वर से परत: ही कारणों से उत्पन्न होकर अनित्य रहता है । १७ हजीब स्वयं अपने रूप से उत्पन्न होता है और नित्य है । १८. जीव आत्म रूप से स्वयं पैदा होकर भी अनित्य है । १६. जीव परतः उत्पन्न होकर भी नित्य एवं शाश्वत है । २०. जीव परतः उत्पन्न होकर ही अनित्य एवं अशास्वत है। इस प्रकार जीव के विषय में २० भंग बनते हैं, इसी तरह अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बम्प और मोक्ष, इन आठ पदार्थों के भी प्रत्येक में २०-२० भंग होते हैं। इस तरह नव, बीस मिलकर क्रियावादियों की कुल संख्या १५० होती है । २. प्रक्रियावादी - क्रियावादी से विपरीत एकान्त जीव आदि का निषेध करने वाले अक्रियावादी. कहलाते हैं । इनके ८४ भेद होते हैं, पुण्य-पाप को छोड़कर जीव अजीव आदि सात पदार्थों को लिखकर उनके नीचे स्वर-पर ये दो भेद रखना, फिर काल, महच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा इन ६ को नौचे रखने से ६४ प्रकार हो जाते हैं, जैसे कि १. जीव स्वतः काल से नहीं है । २. जीव परतः काल से नहीं है। ३. जीव यच्छा से स्वतः नहीं है। ४. जीव परतः यदृच्छा से नहीं है । इसी तरह नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा के साथ जोड़ने से प्रत्येक के दो-दो भेद होकर कुल १२ भेद होते हैं। इसी प्रकार जीव आदि सात पदार्थों के प्रत्येक के १२ भेद होने से कुल ८४ भेद होते हैं। नास्तिकों के मत से स्वतः या परतः जीवादि पदार्थ नहीं हैं। शुन्य वादियों का भी इसी में अन्तर्भाव हो जाता है । ५. अज्ञानवादी अज्ञान से ही कार्य सिद्धि चाहने वाले अज्ञानवादियों के ६७ भेद होते हैंजीव आदि नव पदार्थों के विषय में सत्, असत् आदि सप्त भंगों में संशय करने पर ६७ प्रकार होते हैं, जैसे कि १. जीव सत् है, यह कौन जानता है ? २. जीव असत् है, यह कौन जानता है ? और इन्हें जानने से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? क्या लाभ है ? ३. सत्-असत् उभयात्मक है, यह कौन जानता है ? इन्हें जानने से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? क्या लाभ है ? ४. जीव अवस्तव्य है, यह कौन जानता है ? और यह जानने से भी क्या प्रयोजन ? ५. जीव सत् अवक्तव्य है, यह कौन जानता है ? यह जानने से क्या प्रयोजन ? ६. जीव असद् अवक्तव्य है, यह कौन जानता है ? यह जानने से क्या प्रयोजन ? ७. जीव सद्-असद् अवक्तव्य है, यह कौन जानता है ? यह जानने से क्या प्रयोजन ? इसी तरह अभीव आदि में भी सप्त भंग होते हैं। ये सब मिला कर ६३ भेद होते हैं। अब दूसरे प्रकार के पार भंग बतलाते हैं
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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