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________________ नदीसूत्रम् सीई समुद्दे सणकाला -८५ समुद्देशन काल, अट्ठारस्स पयसहस्साणि पयग्गेणं - पदान-पद परिमाण में अट्ठा रह हजार हैं, संखिज्जा अक्खरा – संख्यात अक्षर अता गमा - अनन्त गम हैं, श्रयंता पज्जत्रा - अनन्त पर्याय हैं, परित्ता तसा - परिमित त्रस, अतायावरा - अनन्त स्थावर हैं, सासय- शाश्वत धर्मास्तिकाय आदि कड - कृत प्रयोगंज और विश्रसाजन्य घट सन्ध्या अभ्रराग आदि, निबद्ध - स्वरूप से कहे गए हैं, निकाइश्रा - निर्युक्ति आदि से व्यवस्थित जिणपण्णत्ता - जिन प्रज्ञप्त भावा-पदार्थ प्राधविज्जतिसामान्य रूप से कहे गये हैं पन्नविज्जति - नाम आदि से प्रज्ञापन किए गए हैं परूविज्र्जति विस्तार से कहे गए हैं दंसिज्जंति - उपमा से दिखाए एग हैं निदंसिज्जंति हेतु आदि से दिखलाए गये हैं उवदंसिज्जंतिनिगमन से दिखलाए गए हैं । से एवं श्राया - आचाराङ्ग का ग्रहण करने वाला तद्रूप हो जाता है, एवं नाया - इसी प्रकार. ज्ञाता एवं विष्णाया - इसी प्रकार विज्ञाता हो जाता है। एवं चरण-करण - इस प्रकार चरण करण की आचाराङ्ग में परूवणा - प्ररूपणा श्राघविज्जंति - कही गयी है, से तं श्रायारे - इस प्रकार आचाराङ्ग श्रुत है । २३० भावार्थ - शिष्य ने प्रश्न किया- भगवन् ! वह आचाराङ्ग श्रुत किस प्रकार है ? आचार्य उत्तर में बोले - आचाराङ्ग में बाह्य - आभ्यन्तर परिग्रह से रहित श्रमण निर्ग्रन्थों का आचार -गोचर - भिक्षा के ग्रहण करने की विधि, विनय - ज्ञानादि की विनय, विनय का फल - कर्मक्षय आदि, ग्रहण और आसेवन रूप शिक्षा, अथवा शिष्य को, सत्य और व्यवहार भाषा, ग्रहण करने योग्य हैं और मिश्र तथा असत्य भाषा त्याज्य हैं। चरण - व्रतादि, करण - पिण्डविशुद्धि आदि, यात्रा - संयम यात्रा के निर्वाह के लिए परिमित आहार ग्रहण करना और नाना प्रकार के अभिग्रहं धारण करके विचरण करना इत्यादि विषयों का वर्णन किया गया है। वह आचार संक्षेप में पांचप्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे कि - ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तप आचार और वीर्य आचार । आचार-श्रुत में — सूत्र और अर्थ से परिमित वाचनाएं हैं, संख्यात - अनुयोगद्वार संख्यात- वेढा-छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात निर्युक्तिएं, और संख्यात प्रतिपत्तिएं वर्णित हैं । वह आचार अङ्ग अर्थ से प्रथम अङ्ग है । उसमें दो श्रुत-स्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं । ८५ उद्देशनकाल हैं, ८५ समुद्देशनकाल हैं । पदपरिमाण में १८ हजार पदाग्र हैं । संख्यात अक्षर हैं । अनन्त गम अर्थात् अनन्त अर्थागम हैं । अनन्त पर्यायें हैं। परिमित स और अनन्त स्थावर हैं । शाश्वतः धर्मास्तिकाय आदि, कृत — प्रयोगज घटादि, विश्रसा-सन्ध्या, बादलों आदि का रंग, ये सभी त्रस आदि सूत्र में स्वरूप से वर्णित हैं। निर्युक्ति, संग्रहणी, हेतु, उदाहरण आदि अनेक प्रकार से जिनप्रज्ञप्त भाव - पदार्थ, सामान्यरूप से कहे गए हैं । नामादि से प्रज्ञप्त हैं। विस्तार से कथन किये गए हैं। उपमान आदि से और निगमन से दिखलाए गए हैं । आचार — आचाराङ्ग को ग्रहण करने वाला, उसके अनुसार क्रिया करने वाला, आचार
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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