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नदीम
अथ कितद् - आङ्गबाह्यम् ? अङ्गबाह्यं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा
१. आवश्यकञ्च, २. आवश्यकव्यतिरिक्तञ्च ।
१. अथ किंतदावश्यकम् ? आवश्यकं षड्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा
१. सामायिक, २. चतुर्विंशतिस्तवः ३. वन्दनकं, ४. प्रतिक्रमणं, ५. कायोत्सर्गः, ६. प्रत्याख्यानं, तदेतदावश्यकम् ।
भावार्थ - शिष्य ने पूछा-भगवन् ! वह गमिक श्रुत क्या है ?
आचार्य उत्तर में कहने लगे-गमिक-श्रुत आदि, मध्य और अवसान में कुछ विशेषता से उसी सूत्र को वारम्बार कहना गमिक श्रुत है, दृष्टिवाद गमिक - श्रुत है ।
अमित क्या है ? गमिक से भिन्न - आचाराङ्ग अगमिक श्रुत है । इस प्रकार गमिक और अगमिक श्रुत का स्वरूप है ।
अथवा वह संक्षेप में दो प्रकार का वर्णन किया गया है, जैसे १. – अङ्गप्रविष्ट और २. अङ्गबाह्य ।
वह अङ्गबाह्य श्रुत कितने प्रकार का है ? अङ्गबाह्य दो प्रकार का वर्णित है, जैसे- १. आवश्यक और २. आवश्यक से भिन्न ।
वह आवश्यक श्रुत कैसा है ? आवश्यक - श्रुत ६ प्रकार का कथन किया गया है, जैसे कि - १. सामायिक, २. चतुर्विंशतिस्तव, ५. वन्दना, ४. प्रतिक्रमण, ५. कायोत्सर्ग और ६. प्रत्याख्यान । इस प्रकार आवश्यकश्रुत का वर्णन है ।
टीका — इस सूत्र में गमिक श्रुत, अगमिक श्रुत, अङ्गप्रविष्ट त और अनङ्गप्रविष्ट श्रुत का वर्णन किया गया है ।
गमिकश्रुत - जिस श्रुत के आदि, मध्य और अवसान में किचित् विशेषता रखते हुए पुनःपुनः पूर्वोक्त शब्दों का उच्चारण होता है, जैसे कि
श्रजयं चरमाणो अ, पाणभुयाइं हिंसइ |
बन्धइ पावयं कम्मं तं से होइ कहुयं फलं ।
अजय चिमाणो अ
......इत्यादि तथा उत्तराध्यनसूत्र के दसवें अध्ययन में
समयं गोयम ! मा पमाए - यह प्रत्येक गाथा के चौथे चरण में जोड़ दिया गया है ।
अगमिकश्रुत - जिसमें एक सदृश पाठ न हों, वह अगमिक श्रुत कहलाता है । अथवा दृष्टिवाद गमिश्रुत से अलंकृत है और कालिक श्रुत सभी अगमिक हैं । चूर्णिकार का भी यही अभिमत है, उनके शब्द निम्न लिखित हैं
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"आई मज्hsवसाणे वा, दुग्गाइ सयग्गसो तमेव,
अगमिक श्रुत के विषय में लिखा है
किंचिविसेस जुत्तं । पढिज्जमाणं गमियं भएइ ॥