________________
संज्ञिश्रुत-असंज्ञिश्रुत
२५०
अनक्षर अत-जो शब्द अभिप्रायपूर्वक व वर्णात्मक नहीं बल्कि ध्वन्यात्मक किया जाता है, उसे अनक्षर श्रुत कहते हैं । जब कोई व्यक्ति किसी विशेष बात को समझाने के लिए इच्छापूर्वक किसी के प्रति अनक्षर शब्द करता है, तब अनक्षर श्रुत कहलाता है, अन्यथा नहीं। उच्छ्वसितं निःश्वसितं लंबे-लंबे श्वास लेना और छोड़ना । निष्ठयूतं थूकना । कासितं -खांसना। तुत–छींकना । निःसिवितं-नासिका से शब्द करना । श्लेष्मितं-कफ निकालने का शब्द करना, अनुस्वारं-हूंकार करना, इसी प्रकार उपलक्षण से सीटी बजाना, घंटी बजाना, नगारा बजाना, भोंपू बजाना, विगुल बजाना, अलार्म करना आदि शब्द यदि बुद्धि पूर्वक दूसरों को सूचित करने के लिए, हित अहित जताने के लिए, सावधान करने के लिए प्रेम, द्वेष, भय जताने के लिए, अपने आने की सूचना देने के लिए, ड्यूटी पर पहुँचने के लिए, मार्गप्रदर्शन के लिए, रोकने के लिए अन्य जो भी शब्द किसी संकेत के लिए नियत किया हुआ है वैसा शब्द करना, ये सब अनक्षर श्रत है। यदि बिना ही प्रयोजन के शब्द किया जाता है, तो उसका अन्तर्भाव अनक्षर श्रत में नहीं हो उक्त कारणों को, भावश्रुत का कारण होने से द्रव्यश्रत कहा जाता है। जैसे कि वृत्तिकार ने लिखा है
___"तथाहि यदाभिसन्धिपूर्वकं सविशेषतरमुच्छ्वसितादिकस्यापि पुंसः कस्यचिदर्थस्य ज्ञप्तये प्रयुङ्क्ते, - तदा तदुच्छ्वसितादिप्रयोक्तु वश्रुतस्य फलं, श्रोतुश्च भावश्रुतस्य कारणं भवति, ततो द्रव्यश्रुतमित्युच्यते ।"
चूर्णिकार के एतद् विषयक शब्द निम्नलिखित हैं, जैसे कि. “से कि तं सुयणाणं इत्यादि-तं च सुयावरणखोवसमत्तणतो एगविधं पितं अक्खरादिभावे . पडुच्च अङ्गबाहिरादिचोइसविहं भण्णइ, तत्थ अक्खरं तिविहं, तं नाणक्खरं, अभिलावक्खरं वएणक्खरं च,
तस्य नाणक्खरं-खर संचरणे, न धरतीत्यक्षरं न प्रच्यवतेऽनुपयोगेऽपीत्यर्थः, अभिलावणतो तं च नाणं से सतो चेतनेत्यर्थः, श्राह एवं सब्वमपि सेसं तो नाणक्खरं, कम्हा सुतं अक्खरमिति भण्णइ ? उच्यते रूढिविसेसतो, अभिलावणा अक्खर भणितो, पंकजवत् एवं ताव अभिलावहेतुत्तणतो सुतविण्णाणस्स अक्खरया भणिया । इयाणि वएणक्खरं वरिणज्जइ-पाणेणाभिघिता अत्था इति वाऽत्थस्स वा वाच्यं चित्रे वर्णकवत्, अहवा द्रव्ये गुणविशेष वर्णकवत् वयेतेऽभिलाप्यते तेन वण्णक्खरं ॥" . इस उद्धरण का आशय यह है कि श्रुतावरण के क्षयोपशम से एकविध होने पर भी अक्षरादि भाव से श्रुतज्ञान चौदह प्रकार से वर्णन किया गया है । ज्ञानाक्षर, अभिलापाक्षर और वर्णाक्षर इस प्रकार अक्षर श्रुत तीन भेदों सहित वर्णन किया गया, जिनकी व्याख्या पहले लिखी जा चुकी है। सूत्र ।।३६।।
३-४. संज्ञि-असंज्ञिश्रुत मूलम्- से किं तं सण्णिसुग्रं? सण्णिसु. तिविहं पण्णत्तं, तं जहा१. कालिग्रोवएसेणं, २. हेऊवएसेणं, ३. दिट्ठिवाअोवएसेणं ।
१. से किं तं कालिग्रोवएसेणं ? कालिग्रोवएसेणं-जस्स णं अत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं सण्णीति लब्भइ। जस्स णं नत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं असण्णीति लब्भइ । से तं कालिप्रोवएसेण।