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________________ ays २२२ नन्दीसूत्रम् होने पर स्पर्श-अस्पर्श व्यवस्था कहां रह सकती है ? जिज्ञासुओं की जानकारी के लिए वृत्ति का पाठ ज्यों का त्यों यहां उद्धृत किया जाता है "यद्यपि चोक्तं—चाण्डालस्पर्शदोषः प्राप्नोति-इति, तदपि चेतनाविकलपुरुषभाषितमिवासमीचीनं, स्पर्श-अस्पर्शव्यवस्थाया लोके काल्पनिकत्वात्, तथाहि न स्पर्शब्यवस्था लोके पारमार्थिकी, तथाहि यामेव भुवमग्रे चण्डालः स्पृशन् प्रयाति, तामेव पृष्ठतः श्रोत्रियोऽपि, तथा यामेव नावमारोहति स्म चाण्डालस्ता. मेवारोहति श्रोत्रियोऽपि, तथा स एव मारुतश्चाण्डालमपि स्पृष्ट्वा श्रोनियमपि स्पृशति, न च तत्र लोके स्पर्शास्पर्शदोषव्यवस्था। तथा शब्दपुद्गलस्पर्शेऽपि न भवतीति न कश्चिदोषः, अपि च यथा केतकीदलनिचयं शतपत्रादिपुष्पनिचयं वा शिरसि निबध्य वपुषि वा मृगमदचन्दनाद्यवलेपनमारचय्य विपणि-- वीथ्यामागत्य चाण्डालोऽवतिष्ठते तदा तद्गतकेतकीदलादिगन्धपुद्गलाः श्रोत्रियादिनासिकास्वपि प्रविशन्ति, ततस्तत्रापि चाण्डालस्पर्शदोषः प्राप्नोतीति तद् दोषभयानासिकेन्द्रयमप्राप्यकारि प्रतिपत्तव्यं, न चैतद्भवतोऽप्यागमे प्रतिपाद्यते, ततो बालिशजल्पितमेतदिति कृतं प्रसङ्गेन"। वृत्ति कार ने स्पर्श-अस्पर्श व्यवस्था और शब्द को पुद्गल जन्य सिद्ध करके बड़े ही मनोरञ्जक भाव प्रकट किए हैं। __ कुछ एक दर्शनकार शब्द को आकाश का गुण मानते हैं ।' उनका यह कथन युक्तिसंगत न होने से अप्रामाणिक माना जाता है, क्योंकि शब्द ऐन्द्रियक है और आकाश अतीन्द्रिय । नियम यह है, कि यदि द्रव्य अतीन्द्रिय है तो उसके गुण भी अतीन्द्रिय ही होंगे, जैसे कि आत्मा अतीन्द्रिय है, तो उसके चेतनादि गण भी अतीन्द्रिय हैं। यदि द्रव्य ऐन्द्रियक हो, तो उसके गुण भी नियमेन ऐन्द्रियक ही होते हैं, जैसेपृथ्वी, अप, तेज और वायु आदि ऐन्द्रियक प्रत्यक्ष हैं, वैसे ही उनके गुण भी क्रमशः गन्ध, शीत, ऊष्ण, स्पर्श आदि भी ऐन्द्रियक प्रत्यक्ष हैं। इस पर वृत्तिकार मलयगिरि जी निम्न प्रकार से लिखते हैं “आकाशगुणतायां शब्दस्यामूर्त्तत्वप्रसक्तेः, यो हि यद् गुणः, स तत्समानधर्मा, यथा ज्ञानमात्मनः, तथाहि-अमूर्त आत्मा, ततस्तद्गुणो ज्ञानमप्यमूर्तमेव, एवं शब्दोऽपि यद्याकाशगुणस्ताकाशस्यामूर्तस्वाच्छब्दस्यापि तद्गुणत्वेनामूर्तता भवेत् ।" इसका सारांश यह है, कि आत्मा के समान अमूर्तिक पदार्थ आकाश को माना गया है । जब गुणी अमूर्तिक हो, तब उसका गुण मूर्तिक कैसे हो सकता है ? शब्द ऐन्द्रियक प्रत्यक्ष, मूर्तिक एवं स्पर्श वाला होने से, उसे पुद्गल की पर्याय मानना ही युक्तियुक्त है । जैसे कि कहा भी है "स्पर्शवन्तः शब्दाः, तत्सम्पर्कादुपघातदर्शनाल्लोष्टवत्, न चायमसिद्धो हेतुः, यतो दृश्यते सद्योजातबालकानां कर्णदेशाभ्यीकृतगाढास्फालितझल्लरीझात्कार-श्रवणतः श्रवणस्फोटो, न चेत्थमुपधातकृत्त्वमस्पर्शवत्त्वेसम्भवति ।" अत: सिद्ध हआ कि शब्द स्पर्शवाला है। मेघ-गर्जन आदि प्रबल शब्द से जन्म-जात बालक के कान के पर्दे फट जाते हैं। यदि शब्द स्पर्श वाला न होता तो वह किसी के कानों के पर्दो की घात कैसे कर सकता है ? सारांश यह है, कि शब्द पुद्गल की पर्याय है। सूत्रकार ने व्यञ्जनावग्रह के चार भेद किए हैं, चक्षु और मन का व्यञ्जनावग्रह नहीं होता ।सूत्र २६॥ १. शब्दगुणकमाकाशम् , तर्कसंग्रहः ।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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