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________________ अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह अथवा अवग्रह से जाने हए पदार्थ में विशेष जानने की जिज्ञासा को ईहा कहते हैं।' या अवग्रह के द्वारा ग्रहण किए हुए सामान्य विषय को विशेष रूप से निश्चित करने के लिए जो विचारणा होती है, उसे ही ईहा कहते हैं।' इस विषय को भाष्यकार ने बहत ही अच्छी शैली से स्पष्ट किया है। अवग्रह में सत् और असत् दोनों प्रकार से ग्रहण हो जाता है, किन्तु उसकी छानबीन करके सद्रूप को ग्रहण करना और असद्रूप का परिवर्जन करना, यह ईहा का कार्य है। अवाय-उसी ईहितार्थ के निर्णय रूप जो अध्यवसाय हैं, उन्हें अवाय कहते हैं । अवाय, निश्चय, निर्णय, ये सब पर्यायान्तर नाम हैं। निश्चयात्मक एवं निर्णयात्मक ज्ञान को अवाय कहते हैं। ईहा द्वारा जाने हुए पदार्थ में विशिष्ट का निर्णय हो जाना अवाय है। धारणा–निर्णीत अर्थ को धारण करना ही धारणा है। निश्चय कुछ काल तक स्थिर रहता है, फिर विषयान्तर में उपयोग चले जाने पर वह निश्चय लुप्त हो जाता है। पर उससे ऐसे संस्कार पड़ जाते हैं, जिनसे भविष्य में कदाचित् कोई योग्य निमित्त मिल जाने पर निश्चित किए हुए उस विषय का स्मरण हो जाता है। जब अवायज्ञान, अत्यन्त दृढ़ हो जाता है, तब उसे धारणा कहते हैं ।५ धारणा तीन प्रकार की होती है, जैसे कि अविच्युति, वासना और स्मृति । अवाय में लगे हुए उपयोग से च्युति न होना उसे अविच्युति कहते हैं, वह अविच्युति अधिक-से-अधिक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण रहती है । अविच्युति से उत्पन्न हुए संस्कार को वासना कहते हैं, वह संस्कार संख्यात, व असंख्यात काल पर्यन्त रह सकता है । कालान्तर में किसी पदार्थ के प्रत्यक्ष करने से तथा किसी निमित्त के द्वारा संस्कार प्रबुद्ध होने से जो ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे स्मृति कहते हैं । जैसे कि कहा भी है ' "तदनन्तरं तदत्था विच्चवणं, जो उ वासणा जोगो । कालान्तरेण जं पुण, अनुसरणं धारणा सा उ ॥" अवग्रह के बिना ईहा नहीं होती, ईहा के बिना निश्चय नहीं होता, निश्चय हुए बिना धारणा नहीं होती। सूत्र.२७ ॥ १- अवग्रह मूलम्-से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. अत्थुग्गहे य, २. वंजणुग्गहे य ॥ सूत्र २८ ॥ १. अवगृहीतार्थ विशेषाकांक्षणमीहा | प्रमाण सू० ।।८।। २. तत्त्वार्थ सू०, पं० सुखलालजी कृत अनुवाद । ३. भूयाभूयविसेसादाणच्चायाभिमुहमीहा । ४. ईहितविशेषनिर्णयोऽवायः । ५. स एव दृढ़ तमावस्थापन्नो धारणा | प्रमाणनयतत्त्वालोक, परिच्छेद २ स० ६-१० वां ।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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