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पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण
क्या बनेगा?"ऐसा कहती हुई से जब मुनिजी ने सुना तो वे विचारने लगे-"मैं तो सर्वथा निष्कलङ्क हूं। यदि विहार करके चला गया तो इससे धर्म की हानि और अपयश होगा, उसे निवारण के लिए मुनि तत्काल ही बोल उठे-“यदि यह गर्भ मेरा हो तो योनि से सम्यक्तया उत्पन्न हो, अन्यथा उदर को फाड़ कर निकले।" दासी के गर्भ का समय चूंकि सम्पूर्ण हो चुका था । अतः बच्चा पैदा नहीं हो रहा था। दासी को बहुत वेदना होने लगी। मुनि शक्ति सम्पन्न थे, इस कारण बच्चा पैदा न हुआ। दासी को मुनि जी की सेवामें ले जाया गया। उसने मुनि जी से क्षमा याचना की और कहा-"महाराज! मैंने आपके प्रति जो शब्द कहे थे, वे द्वेषियों के कथनानुसार ही कहे थे । आप महान् हैं, दयालु हैं, मेरा अपराध क्षमा करें और मुझे विपत्ति से मुक्त करें ।" मुनि क्षमा के सागर थे । तपस्वी थे, अतः उन्होंने दासी को क्षमा कर दिया और बच्चा पैदा हो गया। विरोधी निराश हो गये और मुनि के प्रभाव से धर्म का सुयश होने लगा। मुनि ने धर्म का अवर्णवाद न होने दिया और दासी की भी जान बचा ली। यह मूनि की पारिणामिकी
बुद्धि है।
३. कुमार-एक राजकुमार बालकपन से ही मोदकप्रिय था। वयस्क होने पर उसका विवाह हो गया। एक समय कोई उत्सव आया। उत्सव पर राजकुमार ने अत्युत्तम और स्वादिष्ट मिष्टान्न, पक्वान्न और मोदक आदि बनवाए। अपने संगी-साथियों के साथ इतना अतीव गृद्ध होकर पर्याप्त मात्रा में मोदक आदि खा गया, जिसके परिणाम स्वरूप उसे अजीर्ण हो गया। भोजन आदि न पचने से शरीर से दुर्गन्ध आने लगी और वह बहुत दुःखी होगया। तब राजकुमार विचारने लगा-"अहो ! इतने सुन्दर और स्वादिष्ट भक्ष्य पदार्थ शरीर के संसर्ग मात्र से उच्छिष्ट और दुर्गन्धमय बन गये। अहो ! यह शरीर अशुचि पदार्थों से बना है, इसके सम्पर्क में आने से प्रत्येक वस्तु अशुचि बन जाती है। अतः धिक्कार है, इस शरीर को, जिस के लिये मनुष्य पापाचरण करता है।" इस प्रकार अशुचि भावना का अनुसरण करते हुए, उसके अव्यवसाय उत्तरोत्तर शुभ, शुभतर होते गये और अन्तमुहर्त में उसे केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया । इत्यादि अशुचि भावना आना राजकुमार की पारिणामिकी बुद्धि है।
४. देवी-बहुत समय की बात है। पुष्पभद्र नाम का एक नगर था । वहां का राजा पुष्पकेतु था। उसकी रानी पुष्पावती थी। राजा का एक लड़का और एक लड़की थी। लड़के का नाम पुष्पचूल
और कन्या का पुष्पचूला। भाई बहन का परस्पर अत्यन्त स्नेह था। दोनों के वयस्क होने पर माता .का स्वर्गवास हो गया और वह देवलोक में पुष्पवती नामक देवी के रूप में उत्पन्न हो गयी।
__ पुष्पवती ने देवी रूप में अपने पूर्वभव को अवधिज्ञान से देखा और अपने परिवार को भी। उस के मन में आया कि मेरी पुत्री पुष्पचूला आत्मकल्याण के पथ को भूल न जाये, इस लिए उसे प्रतिबोध देना चाहिये । यह विचार कर पुष्पवती देवी ने अपनी पूर्व भव की पुत्री पुष्पचूला को रात्रि में नरक और स्वर्ग के स्वप्न दिखलाये । स्वप्न देख कर पुष्पचूला को प्रतिबोध हो गया और संसारी झंझट को छोड़ कर संयम ग्रहण कर लिया। तप, संयम, स्वाध्याय के साथ ही वह अन्य साध्वियों की वैयावृत्य में भी रस लेने लगी। शीघ्र ही घाती कर्मों का क्षयकर केवलज्ञान और केवल दर्शन को प्राप्त कर बहुत समय तक दीक्षापर्याय को पाल कर निर्वाण प्राप्त किया। पुष्पचूला को प्रतिबोध देने का पुष्पवती देवी की पारिणामिकी बुद्धि का यह उदाहरण है।
५. उदितोदय-पुरिमताल पुर में उदितोदय नामक राजा राज्य करता था। श्रीकान्ता नामक