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________________ नन्दीसूत्रम् 1१-१२. रथिक और गणिका-रथवान् और वेश्या के उदाहरण स्थूलभद्र के कथानक में आते हैं। वे दोनों उदाहरण वैनायकी बुद्धि के हैं। १३. शाटिका आदि-किसी नगर में एक राजा राज्य करता था। उसके राजकुमारों को कोई कलाचार्य शिक्षा देने लगा। उन राजकुमारों ने विद्याध्ययन के पश्चात् कलाचार्य को बहुत धन भेंट स्वरूप दिया। राजा लोभी था। जब उसे ज्ञात हुआ तो कलाचार्य को मार कर उससे सारा धन छीन लेना चाहा। राजकुमारों को राजा के विचार का पता किसी प्रकार लग गया। वे सोचने लगे-"कि विद्या का दान देने से कलाचार्य भी हमारे पिता के तुल्य ही हैं। इस लिए किसी प्रकार कलाचार्य को इस आपत्ति से बचाना चाहिए।" यह विचार कर कलाचार्य ने जब भोजन करने से पहिले स्नान के लिए राजकुमारों से सूखी धोती मांगी तो कुमार कहने लगे—“अहो शाटिका गीली है।" द्वार के सन्मुख शुष्क तिनका करके-कहने लगे- "तृण लम्बा है।" "पहिले क्रौञ्च सदा प्रदक्षिणा किया करता था, अब वह बायें ओर घूम रहा है।" इन विपरीत बातों को देख आचार्य को ज्ञान हुआ-"कि सभी मेरे से विरक्त हैं, केवल ये राजकुमार गुरुभक्ति के वशीभूत मुझे ज्ञापन कर रहे हैं।' इस लिए जब तक मुझे अन्य कोई नहीं देखता, यहाँ से भाग जाना ही श्रेयस्कर है।" यह कुमारों और कलाचार्य की वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण है। १४. नीबोदक-किसी वणिक स्त्री का पति चिरकाल से परदेश में गया हुआ था। अतः वणिक् ।। की स्त्री ने कामातुर हो अपनी दासी से कहा-"किसी पुरुष को लाओ।" दासी आज्ञा का पालन करते । हुए किसी जार पुरुष को ले आयी । आगन्तुक व्यक्ति के नख व केशों को नापित बुला कर संवारा गया ॥ और अच्छी प्रकार से उसकी सेवा की गई । रात्रि आने पर दोनों उपरि प्रकोष्ठक में व्यभिचार सेवनार्थ चले गये । रात्रि को वृष्टि आरम्भ हो गई । उस व्यक्ति ने प्यास लगने से तात्कालिक मेघ के पानी को . पिया । वह जल मृतसर्प की त्वचा से संमिश्रित था। अत: उस पानी के पीने से उसकी मृत्यु हो गई। यह देख उस स्त्री ने रात्रि के अन्तिम भाग में मृतपुरुष को ले जाकर एक शून्य देवकुलिका में डाल दिया । प्रभात होने पर सिपाहियों ने उस मृत को वहाँ पड़ा पाया । राजपुरुष विचारने लगे कि इस व्यक्ति की मृत्यु कैसे हुई ? विचारते २ उन्होंने देखा कि इसके नाखून और केश तत्कालिक ही संवारे हुए हैं। उन्होंने नगर के नाइयों को बुलाया और पूछा कि किसने इस व्यक्ति के नाखून और बाल काटे हैं ? तब एक नाई ने कहा-"मैंने अमुक वणिक की स्त्री की दासी के कहने से बाल और नख काटे हैं।" दासी ने पहिले तो कुछ न बताया। किन्तु मार पड़ने पर यथातथ्य बात कह दी। वनयिकी बुद्धि का यह दण्डपाशिकों का उदाहरण है। १५. बैलों की चोरी, घोड़े का मरण, वृक्ष से गिरना-कोई पुण्यहीन व्यक्ति जो कुछ भी करता उसके कारण वह विपत्ति में पड़ जाता है। एक दिन किसी किसान ने अपने मित्र से बैल मांग कर हल चलाया। कार्य समाप्त होने पर, असमय में मित्र के बाड़े में बैलों को छोड़ आया। उस समय मित्र भोजन कर रहा था । अत: वह उसके पास न गया। मित्र ने बैलों को बाड़े में छोड़ते समय उस व्यक्ति को देख लिया और मित्र से कुछ कहे बिना अपने घर चला गया। बैल बन्धे नहीं थे, इस लिए वे बाड़े से बाहिर निकल कर कहीं चले गए और उन्हें चोर पकड़ कर ले गए। बैलों को बाड़े में न पाकर, मित्र पुण्यहीन के पास जाकर बल मांगने लगा। लेकिन वह कहाँ से देता । तब मित्र उसे राजकुल में ले चला।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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