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________________ afrat बुद्धि यह वृत्तान्त किसी सिद्धपुत्र ने सुना और कहा कि - " मैं ऐसी बात कहूंगा जो परिव्राजक ने न सुनी हो ।” सब लोगों के सामने राज सभा में यह प्रतिज्ञा हो गयी । तब सिद्धपुत्र ने यह पाठ पढ़ा"तुज्झ पिया मह पिउणो, धारेइ अणूणगं सय सहस्सं । जइ सुयपुष्वं दिज्जउ, श्रह न सुयं खोरयं देसु ॥" अर्थात् - सिद्ध पुत्र ने परिव्राजक से कहा- “तेरे पिता ने मेरे पिता के एक लाख रुपये देने है । यदि यह बात तुमने सुनी हैं, तो अपने पिता का एक लाख रुपये का कर्ज चुका दो, यदि नहीं सुनी है तो मुझे अपनी प्रतिज्ञा अनुसार खोरक - चान्दी का पात्र दे दो ।" यह सुनकर परिव्राजक को अपनी पराजय माननी पड़ी और चांदी का पात्र सिद्धपुत्र को प्रतिज्ञा के अनुसार देना पड़ा। यह सिद्धपुत्र की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण हुआ । २ वैनयिकी बुद्धि का लक्षण मूलम् - ( -१. सुरनित्थरण समस्या, तिवग्ग सुत्तत्थ - गहिय-पेयाला । उभो लोग फलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ॥७३॥ छाया - १. भरनिस्तरणसमर्था, त्रिवर्ग-सूत्रार्थ - गृहीत- पेयाला । उभय-लोकफलवती विनयसमुत्था भवति बुद्धिः ||७३ || पदार्थ - विय-विनय से समुत्था - समुत्पन्न बुद्धी - बुद्धि भर - भार नित्थरण - निर्वाह करने समत्था - समर्थ है तिवग्ग - त्रिवर्ग का वर्णन करने वाले सुत्तस्थ--- सूत्र और अर्थ का पेयाला - प्रधान सार गहिय - ग्रहण करने वाली उभो लोग — दोनों लोक में फलवई - फलवती भवइ – होती है । भावार्थ – विनय से पैदा हुई बुद्धि कार्य भार के है । त्रिवर्ग — धर्म, अर्थ, काम का प्रतिपादन करने ग्रहण करने वाली है तथा यह विनय वाली होती है । मूलम् -- २. ف خو निस्तरण - वहन करने में समर्थ होती वाले सूत्र तथा अर्थ का प्रमाण-सार उत्पन्न बुद्धि इस लोक और परलोक में फल देने २ वैनयिको बुद्धि के उदाहरण ५ , निमित्ते-प्रत्थसत्थे अ, लेहे गणिए अ कूव अस्से य । ८ ૧. ૧૧ ૧૨ गद्दभ-लक -लक्खण गंठी, अगए रहिए य गणिया य ॥ ७४ ॥ ॥
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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