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________________ श्रौत्पत्तिकी बुद्धि १५ मुझे इस बात का बहुत खेद है। इस प्रकार वार्तालाप करते हुए उसने बन्दरों को छोड़ दिया । वे किल किलाहट करते हुए पूर्वाभ्यास के कारण उस मायावी पर आ चदे । कभी सिर पर, कभी कन्धों पर उस से प्यार करने लगे। तब मायावी से कहा-"मित्र ! ये आप के दोनों पुत्र हैं, इसी लिए आप से प्यार करते हैं।" मायावी यह देख कर कहने लगा-"क्या कभी मनुष्य भी बन्दर हो सकते हैं ?" मित्र बोला "यह आप के कर्मों के अनुसार ऐसा हो गया है, तथा सुवर्ण भी कोयले बन सकता है क्या ?" परन्तु हमारे भाग्य वश यह भी हुआ है। इसी प्रकार लड़के भी बन्दर बन गये हैं । तब मायावी सोचने लगा "इसे मेरी चालाकी का पता लग गया है, यदि मैं शोर मचाऊंगा तो कहीं राजा को पता लग जाने से वह मुझे पकड़ लेगा, मेरे पुत्र भी मनुष्य न बन सकेंगे।" तब मायावी ने यथातथ्य सारी घटना मित्रसे कह दी और उस को आधा भाग धन का दे दिया। दूसरे मित्र ने उसके पुत्रों को बुलाकर समर्पित कर दिया। यह सरल मित्र की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। २४. शिक्षा-धनुर्वेद-कोई पुरुष धनुर्विद्या में अत्यन्त कुशल था। वह एक बार भ्रमण करता हुआ किसी समृद्ध नगर में पहुंचा और वहाँ के धनिक व्यक्तियों के लड़कों को एकत्र करके उन्हें धनुर्विद्या सिख लाया करता था। उन धनुर्विद्या आदि के सीखने वाले विद्यार्थियों ने अपने कलाचार्य को शिक्षा के . बदले में बहुत धन आदि उपहार स्वरूप भेंट किया। जब लड़कों के अभिभावकों को यह ज्ञात हुआ कि लड़कों ने इस शिक्षक को बहुत द्रव्य दिया है, तो वे बहुत चिन्तित हुए। उन्होंने निर्णय किया, जब यह द्रब्य लेकर अपने घर जायेगा, तब इसे मार कर सभी धन वापिस ले लेंगे। उनके इस निर्णय का उस शिक्षक को भी किसी प्रकार पता लग गया। " . यह जान लेने के पश्चात् शिक्षक ने ग्रामान्तर में रहने वाले अपने बन्धुओं को किसी प्रकार सूचना भेजी कि "मैं अमुक रात्री को नदी में गोबर के पिण्ड प्रवाहित करूँगा, आप उन्हें पकड़ लेना।" उन्होंने भी इस बात को स्वीकार करके उत्तर भेज दिया। इसके अनन्तर धनुर्विद्या के शिक्षक ने द्रव्य से. मिश्रित गोबर के पिंड बनाये और उन्हें धूप में अच्छी तरह से सुखा लिया। तत्पश्चात् धनिकों के पुत्रों से कहा-"हमारे कुल में यह परम्परा है कि जिस समय शिक्षा का कार्यक्रम पूर्ण हो जाये, उसके अनन्तर अमुक तिथि वः पर्व में स्नान करके मन्त्रों के उच्चारण पूर्वक रात्रि में गोबर के सूखे पिण्ड नदी में प्रवाहित किये जाते हैं।" अतः अमुक रात्रि में ऐसा कार्य क्रम होगा। उन कुमारों ने अपने गुरु की इस बात को स्वीकार कर लिया। तब निश्चित रात्रि में, उन कुमारों के साथ उसने स्नान पूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए सभी गोबर के पिण्ड नदी में विसर्जित कर दिये और घर वापिस लौट आये तथा वे पिण्ड उस के बन्धुओं ने पकड़ लिए और अपने ग्राम में ले गये। ___कुछ दिन बीतने पर धनिकों के पुत्रों व उनके सगे सम्बन्धियों से विदाई लेकर केवल वस्त्र मात्र पहिन कर अपने आप को सबके समक्ष दिखला कर कलाचार्य वहाँ से चल दिये। लड़कों के अभिभावकों ने समझ लिया कि इसके पास कुछ नहीं है, इस कारण उसे लूटने और मारने का विचार छोड़ दिया और वह कुशलता पूर्वक अपने ग्राम में वापिस पहुंच गया। यह कलाचार्य की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण २५. अर्थशास्त्र-नीतिशास्त्र--एक वणिक् था, उसकी दो पत्नियां थीं। एक के पुत्र था और दूसरी बन्ध्या थी। परन्तु पुत्र का दोनों निविशेष लालन-पालन करती थीं और लड़के को यह ज्ञात नहीं होता.
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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