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औत्पत्तिकी बुद्धि
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कि सच-मुच ही यह मुद्रिका मेरे पति की है, ऐसा समझ कर ग़रीब व्यक्ति की धरोहर को भेज दिया। उस राजपुरुष ने वह नोली राजा को समर्पित कर दी। राजाने बहुत सी नोलियों के बीच में उस नोली को रख कर द्रमक को भी पास बुलाया और पास में पुरोहित को भी बिठा लिया। द्रमक नोलियों के मध्य अपनी धरोहर को देख कर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उस का पागलपन भी जाता रहा । सहर्ष राजा से कहने लगा-"महाराज के पास रखी हुई इन नोलियों में मेरी नोली का आकार और प्रकार इस जैसा है।" राजा ने वह नोली उसे सौंप दी और पुरोहित की जिह्वाच्छेद करके उसे वहाँ से निकाल दिया । यह राजा की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
____२०. अङ्क-किसी व्यक्ति ने एक साहूकार के पास हजार रुपयों से भरी हुई नोली धरोहर में रखी, और स्वयं देशान्तर में भ्रमण करने चला गया। पीछे साहूकार ने उस नोली के नीचे के भाग को निपुणता से काट कर रुपये उससे निकाल लिये, उनकी जगह खोटे रुपये भर कर उसी प्रकार सी दिया । कुछ काल के बाद वह व्यक्ति घर लौटा और साहूकार से नोली मांगी। साहूकार से नोली प्राप्त घर जाकर जब उसे खोला तो उस. में खोटे रुपये पाये । यह देख कर वह बहुत दुःखी हुआ और न्यायालय में जाकर अधिकारियों को सारी कहानी सुनाई। न्यायाधीश ने नोली के स्वामी से पूछा-"तेरी नोली में कितने रुपये थे ?" उसने कहा-"एक हजार रुपये थे।" न्यायाधीश ने थैली में भरे हुए रुपये निकालकर असली रुपये उस नोली में भरे, केवल उतने शेष रहे जितनी जगह काट कर सी हुई थी। न्यायकर्ता ने इस से अनुमान लगाया कि अवश्य ही इसने खोटे रुपये डाल दिये हैं। न्यायाधीश ने साहूकार से हजार रुपये उस व्यक्ति को दिलाये और साहूकार को यथोचित दण्ड दिया। यह न्यायाधीश की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
२१. नाणक-एक व्यक्ति ने किसी सेठ के पास हजार सुवर्ण की मोहरों से भरी हुयी थैली मुद्रित करके धरोहर में रख दी। वह पुरुष तत्पश्चात् किसी कार्यवश देशान्तर में चला गया । बहुत समय बीत जाने पर उस सेठ ने थैली से शुद्ध सुवर्ण की मोहरें निकाल कर नई और घटिया उस में डाल कर उसे उसी प्रकार सीकर तथा मुद्रित करके रख दिया । कई वर्षों के पीछे जब मोहरों का स्वामी घर आया और सेठ से थैली मांगी। सेठ ने थैली उसे संभाल दी। वह व्यक्ति थैली को पहिचान करता था अपने नाम की मुद्रा को ठीक पाकर घर ले गया। घर जाकर थैली को खोला तो उसमें अशुद्ध सुवर्ण की नकली मोहरें निकली। वह सेठ के पास गया और कहा-"कि मेरी मोहरें असली थीं। परन्तु इस में झूठी-नकली निकली हैं।" सेठ ने कहा-"मैं नकली-असली कुछ नहीं जानता, तुम्हारी थैली में जैसी थी वैसी ही वापिस दे दी हैं।" दोनों का यह झगड़ा अधिक बढ़ गया और न्यायालय में पहुँच गया। न्यायाधीश ने दोनों के व्यान लिये। तब न्यायाधीश ने थैली के मालिक से पूछा-"कि तुम ने किस वर्ष थैली धरोहर में रखी थी?" उस ने वर्ष, दिन आदि बताये। न्यायाधीश ने उन मोहरों को देखा तो वे नई ही बनी हुई थीं। न्यायाधीश ने समझ लिया कि ये मोहरें नकली हैं। यह निश्चय कर सेठ से असली मोहरें उसे दिला दीं और सेठ को यथोचित दण्ड दिया । यह न्यायकर्ता की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
२२. भिक्षु-किसी व्यक्ति ने एक संन्यासी के पास एक हजार सोने की मोहरें धरोहर में रखीं और स्वयं विदेश में चला गया। कुछ समय के पश्चात् वह लौट कर घर आया और भिक्षु से मोहरें मांगी। परन्तु वह टाल-मटोल करने लगा और आज-कल करके समय निकालने लगा। वह व्यक्ति इस व्यवहार से दुःखी हो गया, क्योंकि भिक्षु उसे धरोहर नहीं दे रहा था।