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आभार प्रदर्शन
अपने चिरस्नेही साहित्यप्रेमी सेवाभावी श्री रत्नमुनिजी का तथा मनोहर व्याख्याता, हिन्दी 'प्रभाकर' मुनि श्रीक्रान्तिकुमार जी का मैं हार्दिक आभार मानता हूं, जिन्होंने प्रस्तुत सूत्र के सम्पादन और प्रकाशन में दाहिने हाथ की तरह पूर्ण सहयोग दिया है। उक्त दोनो मुनियों ने पूज्यपाद आचार्य भगवान की प्रत्यक्ष रूप में जिस निष्ठा से निरन्तर अंग परिचर्या की, उनके स्वर्गवास होने के पश्चात् उसी निष्ठा से परोक्षरूप में भी उन के अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित करने के लिए सतत् उद्यमशील हैं। स्वर्गीय आचार्यप्रवर जी के लिखे हुए अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित करने के लिए जो उक्त मुनिवरों के हृदय में उत्साह हैं, वह प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है। नन्दीसूत्र का मूल, छाया, पदार्थ और भावार्थ का संपादन श्री रत्नमुनिजी ने किया है। हिन्दी टीका का सम्पादन यथा संभव मैंने किया। उसमें भी जहां तक भाषा का सम्बन्ध है, वहां तक उक्त दोनों मुनिवरों का संशोधन एवं परिमार्जन में पूर्ण सहयोग रहा है। इसी प्रकार प्रकाशन कार्य में भी । अत: मैं उक्त दोनों मुनियों का कृतज्ञ एवं धन्यवादी हूँ अन्य भी जिन का इस पुनीतकार्य में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष में सहयोग रहा है, उन का आभार मानना भी मेरा परम कर्तव्य है। भावों में कही पर यदि प्रमादवश स्खलना हो गयी हो तो पाठकजन अनुसंधानपूर्वक स्वाध्याय करें ।
मुनि फूलचन्द श्रमण
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