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नदी सूत्रम्
एकत्रित होकर परस्पर विचार-विमर्श करने लगे कि अब हमें क्या करना चाहिए ? राजा की आज्ञा भी अनुलंघनीय है और उसका यथोचित पालन करना हमारे लिए असंभव लगता है । आदेश पूरा न करने से राजा अवश्य प्रबल दण्ड देगा । इस प्रकार विचार करते-करते मध्याह्नकाल हो आया !
उधर रोहक पिता के बिना न खाना खाता है और न पानी पीता है, वह भूख से व्याकुल होकर पिता के पास उसी सभा में आ पहुंचा और बोला – “पिता जी ! मैं भूख से पीड़ित हो रहा हूं। अत: भोजन के लिए जल्दी घर चलो ।" भरत ने कहा- वत्स ! तुम तो सुखी हो, ग्रामवासियों पर क्या कष्ट आ पड़ा ? इस बात को तुम कुछ भी नहीं जानते हो।"
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रोहक बोला- "पिता जी ! ग्राम पर क्या कष्ट आ पड़ा ?" इसका उत्तर देते हुए भरत ने राजा की आज्ञा और उसकी कठिनाई, सब कुछ कह सुनाई। रोहक ने मुस्कराते हुए कहा - "क्या यही संकट है ? इसे तो मैं अभी दूर किए देता है, इसमें चिन्ता करने जैसी क्या बात है ?"
आप लोग मण्डप बनाने के लिए शिला के चारों ओर तथा नीचे की तर्फ भूमि को खोदो और यथास्थान अनेक आधार स्तम्भों को लगाकर मध्यवर्ती भूमि को खोदो। फिर चारों ओर अति सुन्दर दीवारें खड़ी करदो, बस मण्डप बनकर तैयार हो जाएगा। यह है राजाज्ञा पालन करने का सुगम उपाय ।" मण्डप निर्माण करने के सहज उपाय को सुनकर ग्राम के प्रमुख पुरुष परस्पर कहने लगे - यह उपाय सर्वथा उचित है, हमें इसी प्रकार करना चाहिए। इस प्रकार निर्णय करके सभी लोग अपने-अपने घरों को भोजन करने के लिए चल दिए। भोजन करने के पश्चात् वे सब उसी स्थान पर पुनः आ पहुंचे । शिला के नीचे उन्होंने एक साथ खुदाई का कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया। कुछ ही दिनों में वे मण्डप तैयार करने में सफल हो गए। राजा की आज्ञा के मुताबिक उन्होंने महाशिला को उस मण्डप की छत बना दिया ।
तत्पश्चात् उन ग्रामीणों ने राजा के पास जाकर निवेदन किया कि महाराज ! आप श्री जी ने हमारे लिए जो आज्ञा दी थी, उसमें हम कितने सफल हुए हैं? इसका निरीक्षण आप स्वयं करलें । राजा ने. अवकाश के समय स्वयं निरीक्षण किया उसे देखकर राजा का मन प्रसन्न हो गया। फिर राजा ने उनसे पूछा - "वह किसकी बुद्धिका चमत्कार है ?" इसका उत्तर देते हुए उन ग्रामीणों ने कहा- "यह भरत बुत्र रोहक की बुद्धि की उपज है और बनाने वाले हम हैं।" रोहक की हाजर जवाबी नई सूझ बूझ वाली बुद्धि से राजा बड़ा सन्तुष्ट हुआ ।
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३. मिगडा मेण्डे का उदाहरण राजा ने अन्य किसी दिन रोहक की बुद्धिपरीक्षा के उद्देश्य से उस ग्राम में वरिष्ठ राजपुरुषों के द्वारा एक मिण्टा भेजा और साथ ही यह सूचित किया कि "यह मिठा जितने वज़न का आज है, उतने ही वज़न का एक पक्ष के बाद भी रहे, उस वज़न से न घटे और न बढ़ने पाए, ज्यों के त्यों वजनसहित हमें सौंप देना ऐसा महाराजा साहिब का आदेश है। यह सूचित कर वे राजपुरुष लौट गए । उपर्युक्त आज्ञा मिलते ही ग्रामनिवासी लोग चिंतित हुए। यदि इसे खाने को अच्छे अच्छे पदार्थ देंगे तो निश्चय ही बढ़ेगा और यदि इसे भूखा रखें तो निःसन्देह घटेगा ही । इस विकट समस्या को सुलझाने के लिए बहुत कुछ सोचा- विचारा । किन्तु किसी प्रकार का उपाय न सूझने से उन्होंने रोहक को बुलाया और कहा "यस्स ! आप की प्रतिभाशक्ति बड़ी प्रबल है। पहले भी आपने ही राजदण्ड से हमें मुक्त कराया और अब भी मझधार में पड़ी हुई नैय्या के कर्णधार आप ही हैं।" जो राजा की आज्ञा थी, वह सब रोहक को अथ से इति तक कह सुनाई ।
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