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________________ औत्पत्तिकी बुद्धि कहने से अपनी स्त्री के साथ अप्रीति का व्यवहार किया। इस प्रकार पश्चात्ताप करने के अनन्तर भरतनट पहले की तरह ही अपनी स्त्री से प्रेम व्यवहार करने लगा । १६७ इधर रोहक भी सोचने लगा कि मेरे द्वारा किए गए दुर्व्यवहार से अप्रसन्न हुई विमाता कभी मुझे विष आदि के प्रयोग से मार न दे। अतः भविष्य के लिए एकाकी भोजन करना ठीक नहीं है। ऐसा सोचकर उसने अपना खाना-पीना, रहन-सहन, सब-कुछ पिता के साथ ही करने का कार्यक्रम बना लिया । अन्य किसी दिन कार्यवश रोहक अपने पिता के साथ उज्जयिनी नगरी गया । नगरी अपने वैभव से अलकापुरी के तुल्य समृद्ध एवं सौन्दर्य पूर्ण थी, उसे देखकर रोहक अति विस्मित हुआ और अपने मन में कैमरे की तरह उस नगरी का चित्र खींच लिया। तत्पश्चात् जब पिता के साथ अपने ग्राम की ओर आने लगा, तब नगरी से बाहर निकलते ही भरत को भूली हुई वस्तु की याद आई और उसे लेने के वास्ते रोहक बालक को सिप्रा नदी के तट पर बैठा कर स्वयं वह पुनः नगरी में लौट गया । इधर रोहक ने नदी के तीर पर बैठे हुए अपनी बुद्धिमत्ता से तथा बाल चंचलता से शुभरेती पर कोटपूर्ण नगरी का नक्शा तैयार कर लिया। अकस्मात् उपर से राजा अपने साथियों से भटका हुआ एकाकी उसी मार्ग से चल आया। उसे अपनी लिखी हुई नगरी के ऊपर से आते देखकर रोहक ने कहा—“राजन् ! इस मार्ग से मत जाओ ।" इतना सुनते ही राजा बोला - "क्यों बच्चा ! क्या बात है ?" रोहक ने कहा- "यह राजभवन है, इसमें हरएक व्यक्ति बिना आज्ञा के प्रवेश नहीं कर सकता।" यह सुनते ही उसके द्वारा लिखी हुई नगरी को राजा ने कौतुक वा बड़े गौर से देखा और रोहक से पूछा- "अरे वत्स! क्या तुमने वह नगरी पहले भी कभी देखी है, या नहीं ?" रोहक ने कहा"राजन् ! पहले कभी नहीं देखी, आज ही ग्राम से मैं यहां आया हूं।" राजा उस बालक की अपूर्व धारणाशक्ति और उसके चातुर्य को देखकर आश्चर्य चकित हुआ और मन ही मन उसकी अद्भुत बौद्धिक शक्ति की प्रशंसा करने लगा । I कुछ समय के अनन्तर राजा ने रोहक बालक से पूछा - " वत्स ! तुम्हारा नाम क्या है ? और कहां पर रहते हो ? वह बोला- "राजन् ! मेरा नाम रोहक है और यहां से निकटवर्ती नटों के 'अमुक ग्राम में रहता हूं।" इस प्रकार दोनों में बात चीत चल ही रही थी कि इतने में रोहक का पिता भरत आ पहुंचा और पिता-पुत्र दोनों अपने ग्राम की ओर चल पड़े। राजा भी अपने महल में चला आया । अपने नित्य के राज्यकार्य से निवृत्त होकर राजा सोचने लगा कि मेरे चार सौ निन्यानवें ४९९ मंत्री हैं। यदि इनमें एक कुशाग्रबुद्धिशाली महामंत्री और होजाए तो मैं सुखपूर्वक राज्य चलाने में समर्थ हो सकूंगा। क्योंकि अन्य बल न्यून होने पर भी केवल बुद्धिबल से राजा निष्कण्टक राज्य भोग सकता है और हेलया ही शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार सोच-विचार कर राजा ने कुछ दिनों तक "रोहक कितना बुद्धिमान है।" उसकी अनेक प्रकार से परीक्षा करने लगा, जैसे कि 1 - २. शिला - सर्व प्रथम राजा ने उस ग्राम में रहनेवाले ग्रामीणों को बुलाकर आज्ञा दी "तुम सब मिलकर एक ऐसा मण्डप बनाओ जो कि राजाधिराज के योग्य हो, और ग्राम से बाहिर जो महाशिला है, उसे बिना उखाड़े ही वह मण्डप का आच्छादन बन जाए ।" राजा की उपर्युक्त आज्ञा को सुनकर सभी ग्रामवासी चिन्तातुर हो गए । वे सब पंचायतघर में
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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