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________________ औत्पत्ति की बुद्धि रहा है, जिन्होंने महत्त्वपूर्ण सूझ-बूझ सहित कही हुई बातों से या अद्भुत कृत्यों से या अलौकिक बुद्धि से जनता को चमत्कृत किया है। उनमें राजा, बादशाह, मंत्री, न्यायाधीश, महात्मा, महापुरुष, गुरु, शिष्य, किसान धूर्त, विदूषक, दूत, विरक्त, संन्यासी, परिव्राजक, देव, दानव, कलाकार, गायक, हंसोड़, ऐसे बालक, नर एवं नारियों का वर्णन विशेष उल्लेखनीय है । इनका वर्णन इतिहास, कथानक, दृष्टांत, उदाहरण और रुपक आदि के रूपों में मिलता है। १. इतिहास-जिसमें किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के जीवन की विशेष तथा अद्भ त घटनाओं का वर्णन हो, वही इतिहास है। इसमें प्रायः सच्ची घटनाएं होती हैं । जिस भूमि में जन्म लिया, जहां शिक्षाप्राप्त की, जहाँ जीवन में प्रगति की, जहां शिक्षा-दीक्षा, प्रवचन, विजय, विकास, मरण आदि का तथा द्रव्यक्षेत्र और काल का स्पष्टोल्लेख पाया जाता है, उसे इतिहास कहते हैं। २. कथानक-जिसमें कहानी की मुख्यता हो । कहानियां दो प्रकार की होती हैं, १. वास्तविक, २. काल्पनिक, इनमें जो वास्तविक होती हैं, उनके पीछे जीवन उपयोगी शिक्षाएं होती हैं । जीवन के जिस-जिस वयः में कोई विशेष घटनाएं हुईं, उनका वर्णन करना, फिर वे चाहे किसी भी शती में हुई हों, इसे जानने के लिए कोई आवश्यकता नहीं रहती। उसके शेष अवशेष आदि द्रव्य-क्षेत्र कहां है ? इसे जानने की श्रोताओं में उत्कण्ठा नहीं रहती। जो काल्पनिक होती हैं, उनमें भी वास्तविकता की पुट दी होती है। वे भी अच्छाई और बुराई से परिपूर्ण होने के कारण श्रोताओं की मार्ग प्रदर्शिका होती हैं। ३. दृष्टान्त-जिसमें किसी के जीवन की विशेष झलकियां तथा अनुभूतियां हों, वे दृधांत कहे जाते हैं। इसका सम्बन्ध प्रायः अपरिचित देश-काल और व्यक्ति से होता है। वर्णन किए जा रहे किसी विषय को स्पष्ट करने के लिए दृष्टान्त का प्रयोग किया जाता है। दृष्टांत में पशु-पक्षी, वृक्ष, जड़ पदार्थ आदि ये सब सम्मिलित हैं । दृष्टांत छोटे भी होते और बड़े भी। ४. उदाहरण-छोटे-छोटे उदाहरण तथा प्रत्युदाहरण विषय को स्पष्ट करने के लिए दिए जाते हैं। 'स धर्म करोति' यह कर्तृवाच्य का तथा 'तेन धर्मः क्रियते' यह कर्म वाच्य का उदाहरण है। शिक्षा के लिए दूध-पानी की मैत्री, सूई, कैंची के उदाहरण प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार अन्य-अन्य के विषय में समझना चाहिए। ५. रूपक-जिसमें काल्पनिक पर वास्तविकता की पूट दी जाती है। यह लक्षणावृत्ति और व्यंजनावृत्ति में काम आता है। इसके पीछे अच्छे-बुरे अनेक भाव छिपे हुए होते हैं। इसको छायावाद का एक अङ्ग भी कह सकते हैं। उत्प्रेक्षालंकार और रूपकालंकार इसके दो पहलु हैं। संघनगर, संघमेरु, संघरथ, संघचक्र और संघसूर्य आदि प्रस्तुत सूत्र में जो उल्लेख मिलते हैं, वे सब रूपक हैं । - प्रस्तुत सूत्र में औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा तथा पारिणामिकी बुद्धि पर केवल कथानक के नायकों के नाम का ही निर्देश किया है। संभव है, उस काल में ये अतिप्रसिद्ध होंगे । चूर्णिकार तथा हरिभद्र वृत्तिकार के युग तक ये दृष्धान्त अतिप्रसिद्ध होने के कारण उन्होंने अपनी चूणि व वृत्ति में इनका उल्लेख नहीं किया। वृहद्वृत्तिकार आचार्य मलयगिरि के युग में सूत्रस्थ दृष्टान्त इतने प्रसिद्ध नहीं रहे। कुछ का तो उन्हें ज्ञान था और कुछ अनुभवी शास्त्रज्ञों से जानकर उन्होंने दृष्टांत लिखे । उसी वृत्ति का आधार लेकर क्रमशः सभी दृष्टांतों के लिखने का यहाँ प्रयास किया गया है। ||
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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