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नन्दीसूत्रम्
६. ११-११ सिद्ध हुए अनन्तं गुणा कम । इसी क्रम से एक-एक बढ़ाते हुए, उनसे अनन्त गुणा न्यून करते हुए २० तक कहना । इस प्रकार सब स्थानों के चार भाग करके पहले भाग में संख्यात गुणा कम कहना, दूसरे भाग में असंख्यात गुणा कम, तीसरे और चौथे भाग में अनन्त गुणा कम कहना । जिस स्थान से एक समय में दस सिद्ध हो सकते हैं, उस स्थान की अपेक्षा से
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१. एक समय में एक एक सिद्ध हुए सब से अधिक ।
२. एक समय में दो-दो सिद्ध हुए, उनसे संख्यात गुणम ।
३. एक समय में तीन-तीन सिद्ध हुए, उनसे संख्यात गुणा कम । ४. एक समय में चार-चार सिद्ध हुए, उनसे संख्यात गुणा कम । ५. एक समय में पाँच-पाँच सिद्ध हुए, उनसे असंख्यात गुणा कम ।
६. इसी प्रकार छः-छः यावत् नौ-नौ सिद्ध हुए, अनन्न गुणा कम । ७. एक समय में दस-दस सिद्ध हुए सबसे न्यून | ऊर्ध्वलोक में चार सिद्ध सकते हैं, वहां से -
१. एक समय में एक-एक सिद्ध हुए सबसे अधिक ।
२. दो-दो सिद्ध हुए, उनसे असंख्यात गुणा कम ।
३. तीन-तीन तथा चार-चार सिद्ध हुए, उनसे अनन्त गुणा कम । एक समय में दो सिद्ध हो सकते हैं, वहाँ से -
में
समुद्र
१. एक-एक सिद्ध हुए, सबसे अधिक ।
२. दो-दो सिद्ध हुए, अनन्त गुणा ।
इसी प्रकार अन्य अन्य स्थानों के विषय में भी समझ लेना चाहिए ।
यह परंपर सिद्ध केवल ज्ञान का थोकड़ा समाप्त हुआ ।
अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान
मूलम् — से किं तं प्रणंतरसिद्ध-केवलनाणं ? प्रणंतरसिद्ध केवलनाणं, पण रसविहं पण्णत्तं तं जहा -
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१. तित्थसिद्धा, २ . अतित्थसिद्धा, ३ . तित्थयर सिद्धा, ४. अतित्थयरसिद्धा, ५. संयमबुद्धसिद्धा, ६. पत्तेयबुद्धसिद्धा, ७. बुद्धबोहियसिद्धा, ८. इत्थि - लिंगसिद्धा, 8. पुरिसलिंगसिद्धा, १०. • नपुं संग लिंगसिद्धा, ११. सलिंगसिद्धा, १२. अन्नलिंगसिद्धा, १३. गिहिलिंगसिद्धा, १४. एगसिद्धा, १५. अणेगसिद्धा, से त्तं अणंतरसिद्ध-केंवलनाणं ।। सूत्र २१ ॥
छाया - अथ किं तद् अनन्तरसिद्ध - केवलज्ञानम् ? अनन्तरसिद्ध - केवलज्ञानं, पञ्जदशविषं प्रज्ञप्तं, तद्यथा