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________________ नन्दीसूत्रम् मनःपर्यवज्ञान लब्धिप्राप्त अप्रमत्त संयत को ही होता है, प्रमत्त को नहीं। आहारक लब्धि की उपलब्धि छठे गुणस्थान में होती है। उस शरीर का उद्भव और प्रयोग प्रमत्तसंयत गुणस्थान में ही होता है। उपर्युक्त नो शर्ते चार भागों में विभक्त हो जाती हैं, जैसे कि पर्याप्तक, गर्भज और मनुष्य ये तीन द्रव्य में, कर्मभूमिज यह क्षेत्र में, संख्यात वर्षायुष्क यह काल में और सम्यग्दृष्टि-संयत-अप्रमत्त-लब्धिप्राप्त ये चार भाव में अन्तर्भूत हो जाते हैं । इस प्रकार जब द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की सामग्री पूर्णतया प्राप्त होती है, तब मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होकर मन:पर्यवज्ञान उत्पन्न होता है, अन्यथा नहीं। . मन:पर्यायज्ञान के भेद मूलम्-तं च दुविहं उप्पज्जइ, तं जहा-उज्जुमई य विउलमई य, तं समासो चउन्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वो, खित्तो, कालो, भावो। तत्थ दव्वनो णं-उज्जुमई अणंते अणंतपएसिए खंधे जाणइ, पासइ, ते चेवविउलमई अब्भहियतराए, विउलतराए, विसुद्धतराए, वितिमिरतराए जाणइ,. पासइ। खित्तप्रोणं-उज्जुमई य जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भाग, उक्कोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डुगपयरे, उड्व जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जाव अंतोमणुस्सखित्ते अड्डाइज्जेसु दीवसमुद्देसु, पन्नरससु कम्मभूमिसु, तीसाए अकम्मभूमिसु, छप्पन्नाए अंतरदीवगेसु संन्निपंचिंदियाणं पज्जत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ, तं चेव विउलमई अड्डाइज्जेहिमंगुलेहिं अब्भहियतरं, विउलतरं, विसुद्धतरं, वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ पासइ । __ कालो णं-उज्जुमई जहन्नेणं पलिग्रोवमस्स असंखिज्जइ भाग, उक्कोसएणवि पलिअोवमस्स असंखिज्जइ भाग-प्रतीयमणागयं वा कालं जाणइ, पासइ, तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं, विउलतरागं, विसुद्धतरागं, वितिमिरतरागं जाणइ पासइ। भावो णं-उज्जुमई अणते भावे जाणइ पासइ, सव्वभावाणं अणंतभागं जाणइ, पासइ, तंचेव विउलमई अब्भहियतरागं, विउलतरागं, विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ, पासइ ।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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