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मनःपर्यवज्ञान संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, अणिड्डीपत्त-अप्पमत्तसंजयसम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं ? गोयमा ! इड्डीपत्त-अप्पमत्तसंजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउयकम्मभूमिय-गब्भवक्कं तिय-मणुस्साणं, नो अणिड्डीपत्त-अप्पमत्त-संजय-सम्मदिट्ठिपज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंति-यमणुस्साणं मणपज्ज्जवनाणं समुप्पज्जइ ॥सूत्र १७॥
छाया–यदि अप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युक्रान्तिक-मनुष्याणां, किं ऋद्धिप्राप्ताऽप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणाम्, अनृद्धिप्राप्ताऽप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्यक-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणाम् ? गौतम ! ऋद्धिप्राप्ताऽप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणां, नो अनृद्धिप्राप्ताऽप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणां मनःपर्यवज्ञानं समुत्पद्यते ॥सूत्र १७॥ .पदार्थ जइ–यदि अप्पमत्तसंजय-अप्रमत्तसंयत सम्मदिटि–सम्यग्दृष्टि पज्जत्तग-पर्याप्तक संखेज्जवासाउय-संख्यातवर्षायुष्क कम्मभूमिय-कर्मभूमिज गम्भवक्कंतिय-गर्भज मणुस्साणं-मनुष्यों को किं-क्या इड्डीपत्त-ऋद्धिप्राप्त अप्पमत्तसंजय-अप्रमत्तसंयत सम्मदिठ्ठि–सम्यग्दृष्टि पज्जत्तगपर्याप्त संखेज्जवासाउय-संख्यातवर्षायुष्क कम्मभूमिय-कर्मभूमिज गब्भवक्कंतिय-गर्भज मणुस्साणंमनुष्यों को अणिड्ढीपत्त-अनृद्धिप्राप्त अप्पमत्तसंजय-अप्रमत्तसंयत सम्मदिठि-पज्जत्तग–सम्यग्दृष्टिपर्याप्तक संखेज्जवासाउय-संख्यातवर्षायुष्य कम्मभूमिय-कर्मभूमिज गब्भवक्कंतिय-गर्भज मणुस्साणंमनुष्यों को? गोयमा-गौतम ! इड्ढीपत्त-ऋद्धिप्राप्त अप्पमत्तसंजय-अप्रमत्तसंयत सम्मदटिठिसम्यग्दृष्टि पज्जत्तग-पर्याप्तक संखेज्जवासाउय-संख्यातवर्षायुष्क कम्मभूमिय–कर्मभूमिज गब्भवकैतिय-गर्भज मणुस्साणं-मनुष्यों को प्रणिड्ढीपत्त-अनृद्धिप्राप्त अप्पमत्तसंजय-अप्रमत्तसंयत सम्मदिठि-सम्यग्दृष्टि पज्जत्तग-पर्याप्तक संखेज्जवासाउय-संख्यातवर्षायुष्यक कम्मभूमिय-कर्मभूमिज गब्भवक्कंतिय-गर्भज मणुस्साणं-मनुष्यों को मणपज्जवनाणं-मनः पर्यायज्ञान नो-नहीं समुप्पज्जइसमुत्पन्न होता।
भावार्थ-यदि अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्यवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है, तो क्या ऋद्धिप्राप्त-लब्धिधारी अप्रमत्तसंयत सम्यगदृष्टि पर्याप्त-संख्यातवर्षायु-कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्यों को अथवा लब्धिरहित अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यातवर्ष आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ? भगवान ने उत्तर दिया-गौतम ! ऋद्धिप्राप्त अप्रमादी सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष आयु वाले कर्मभूमि