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मनःपर्यवज्ञान
गम्भवतिय-मणुस्साणं-कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को, अकम्मभूमिय गम्भवक्कंतिय-मणुस्साणं-अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को, अंतरदीवग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं १ अन्तरद्वीपज-गर्भज मनुष्यों को गोयमा!गौतम ! कम्मभूमिय गम्भवक्कंतिय-मणुस्साणं-कर्मभूमिज गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों को, अकम्मभूमियगम्भ-वक्कंतिय-मणुस्साणं--कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को नो-नहीं, और अंतरदीवग-गब्भवक्कंतियमणुस्साणं अन्तरद्वीपज-गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों को नो--नहीं।
भावार्थ-यदि गर्भज मनुष्यों को मनःपर्यायज्ञान उत्पन्न होता है, तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को, अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को अथवा अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों को ? गौतम ! कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को मनःपर्यव ज्ञान पैदा होता है, अकर्मभूमिज-गर्भज और अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों को नहीं होता।
· टीका-इस सूत्र में कर्मभूमिज गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यो को ही मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न हो सकता है, किन्तु अकर्मभूमिज मनुष्यों को तथा अन्तरद्वीप के गर्भज मनुष्यों को नहीं, ऐमा कयन किया है । इस प्रकार
विधि और निषेधरूप में भगवान ने गौतम स्वामी के प्रश्न का उत्तर दिया है । इसके अनन्तर जिज्ञासु को • जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि कर्मभूमि और अकर्मभूमि की क्या परिभाषा है ? पहले इसी को समझना . आवश्यकीय है, क्योंकि पारिभाषिक शब्द ज्ञान के बिना स्वाध्याय में प्रगति नहीं होती।
कर्मभूमि और अकर्मभूमि जहाँ असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, कला, शिल्प, राजनीति विद्यमान हैं तथा--साधु-साध्वी, श्रावकश्राविकाएं, इस प्रकार चार तीर्थ स्व-स्व कर्तव्य पालन में प्रवृत हों, उसे कर्मभूमि कहते हैं। जो राजनीति और धर्मनीति प्रधान भूमि नहीं है, वह अकर्मभूमि कहलाती है। अकर्मभूमिज मानवों का जीवन यापन कल्पवृक्षों पर निर्भर है। ३० अकर्मभूमि और ५६ अन्तरद्वीप ये सब अकर्मभूमि या भोग भूमि कहलाते हैं, इनका सविस्तर वर्णन जीवाभिगमसूत्र में किया गया है। तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र में भी काल के अधिकार में युगलियों का प्रकरण जिज्ञासूओं के अध्ययन के योग्य है।
मूलम्-जइ कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, किं संखिज्जवासाउयकम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, असंखिज्जवासाउय-कम्मभूमिय गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं ? गोयमा ! संखिज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, नो असंखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं ।
छाया-यदि कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणां, किं संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणाम्, असंख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणाम् ? गौतम ! संख्येयवर्घायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणाम्, नो असंख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक-मनुष्याणाम्।
पदार्थ-जइ-यदि कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं--कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को, तो किं
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