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. नन्दीसूत्रम्
होयमान अवधिज्ञान मूलम-से किं तंहीयमाणयं ओहिनाणं? हीयमाणयं प्रोहिनाणं-अप्पसत्थेहिं अज्झवसायट्ठाणेहिं वट्टमाणस्स वट्टमाणचरित्तस्स, संकिलिस्समाणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स, सव्वनो समंता अोही परिहायइ, से तं हीयमाणयं प्रोहिनाणं ॥सूत्र १३॥
छाया-अथ किं तद्धीयमानकमवधिज्ञानम्? हीयमानकमवधिज्ञानम् -अप्रशस्तेष्वध्यवसायस्थानेषु, वर्तमानस्य वर्तमानचारित्रस्य, संक्लिश्यमानस्य संक्लिश्यमानचारित्रस्य सर्वतः समन्तादवधिः परिहीयते, तदेतद्धीयमानकमवधिज्ञानम् ।।सूत्र १३॥
. पदार्थ-से किं तं हीयमाणयं-अथ वह हीयमान श्रोहिनाणं ?--अवधिज्ञान क्या है ? हीयमाण भोहिनाणं-हीयमानक अवधिज्ञान अप्पसत्थेहि-अप्रशस्त अज्झवसायष्टाणेहिं-अध्यवसाय स्थानों में वहमालस्स-वर्तमान अविरत सम्यग्दृष्टि को तथा वहमाणचरित्तस्स-वर्तमान देश-विरत चारित्र के विषय संकिलिस्समाणस्स-उत्तरोत्तर संक्लेश पाते हुए संकलिस्समाणचरित्तस्स-संक्लेशपाते हुए चारित्र के विषय सम्बनो--सब ओर से समंता-सब प्रकार से अोही-अवधि ज्ञान परिहायह-पूर्वावस्था से हानि को प्राप्त होता है।
से तं-इस प्रकार हीयमाणयं-हानि को प्राप्त होता हुआ ओहिनाणं-अवधिज्ञान का विषय है।
भावार्थ-भगवन् ! वह हीयमान अवधिज्ञान किस प्रकार है ?
गुरुजी उत्तर में बोले-हीयमान अवधिज्ञान-अप्रशस्त-अशुभ विचारों में वर्तने वाले अविरत सम्यग्दृष्टि जीव तथा वर्तमान देशविरत चारित्र और सर्वविरत-चारित्र-साधु जब अशुभ विचारों से संक्लेश को प्राप्त होता है और चारित्र में संक्लेश होता है तब सर्व
ओर से और सर्व प्रकार से अवधिज्ञान की पूर्व अवस्था से हानि होती है । इस प्रकार यह हीयमान-हानि को प्राप्त होते हुए अवधिज्ञान का विषय है ।। सूत्र १३ ॥
.. टीका-प्रस्तुत सूत्र में हीयमान अवधिज्ञान का विषय वर्णन किया गया है। जब चारित्र मोहनीय कर्मों का उदय हो जाता है, तब आत्मा में अप्रशस्त अध्यवसाय उत्पन्न होते हैं। जब सर्वविरति, देशविरति तथा अवरति-सम्यग्दृष्टि आत्मा संक्लिश्यमान परिणामों में वर्तने लगते हैं, उस समय आत्मा में उत्पन्न अवधिज्ञान का ह्रास होने लगता है । सूत्रकार ने संकिलिस्समाण चरित्तस्स यह पद दिया है, जिसका भाव है कि जो जीव सर्वविरति एवं देशविरति में क्लेशयुक्त होता है, उसका अवधिज्ञान सब ओर से हानि को प्राप्त हो जाता है । इस सूत्र का अन्तिम निष्कर्ष यह निकला कि अप्रशस्त योग और संक्लेश ये दोनों ज्ञान के एकान्त बाधक हैं। अतः प्रशस्त योग और शान्ति ये दोनों ज्ञान-वृद्धि में अमोघ साधन हैं।