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नन्दीसूत्रम्
पदार्थ -सब-सब बहु-अधिक अगणि जीवा-अग्नि के जीवों ने सब्व-दिसागं- सर्व दिशाओं में निरंतरं- अनुक्रम से जत्तियं-जितना खित्तं-क्षेत्र भरिज्जंस भरा है, इतना खित्तं-क्षेत्र परमोहीपरम अवधिज्ञान का निहिट्ठो-निर्दिष्ट किया है।
भावार्थ-सब सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त अग्नि के सर्वाधिक जीवों ने सब दिशाओं में अन्तररहित आकाश के जितने प्रदेशों को भरा है, उतना परमावधिज्ञान का क्षेत्र तीर्थंकर व गणधरों ने प्रतिपादन किया है।
टीका-इस गाथा में सूत्रकार ने अवधिज्ञान का उत्कृष्ट विषय निर्दिष्ट किया है। पांच स्थावरों में सबसे स्वल्प तेजस्कायिक जीव हैं, क्योंकि अग्नि के जीव समय क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। सूक्ष्म सब लोक में और बादर ढाई द्वीप में । तेजस्काय के जीव भी अन्य स्थावरों की भान्ति चार प्रकार के होते हैं. १ सूक्ष्म--पर्याप्त और अपर्याप्त, २. बादर-पर्याप्त और अपर्याप्त । इन चारों में असंख्यातासंख्यात जीव प्रत्येक भेद में पाए जाते हैं। उन जीवों की उत्कृष्ट संख्या अजितनाथ भगवान के तीर्थ में हुई थी। इसलिए सूत्रकार ने गाथा में भूतकाल की क्रिया का ग्रहण किया है । कल्पना कीजिए, यदि उन जीवों में से प्रत्येक जीव को आकाश के प्रत्येक प्रदेश पर रखा जाए, और इस प्रकार रखते-रखते लोक जैसे असंख्यात खण्ड अलोक से लिए जाएं, इस तरह उन जीवों के द्वारा जितना क्षेत्र भर जाए, उतना क्षेत्र परम-अवधिज्ञान का विषय है। ऐसा तीर्थंकर और गणधरों ने प्रतिपादन किया है।
अवधिज्ञान का मध्यम क्षेत्र
मूलम्-३. अंगुलमावलियाणं, भागमसंखिज्जं दोसु संखिज्जा।
अंगुलमावलिअंतो, आवलिया अंगुल-पुहुत्तं ॥५७॥ छाया-३. अङ्गुलमावलिकयोः, भागमसंख्येयं द्वयोः संख्येयम् ।
__ अगुलमावलिकान्तः, आवलिकामगुल-पृथक्त्वम् ॥५७।।
पदार्थ-अंगुलमावलियाणं-क्षेत्र से अगुल के असंखिज---असंख्यातवें भागे-भाग को देखे तो काल से भी आवलिका का असंख्यातवां भाग देखे दोसु-दोनों में अर्थात् यदि क्षेत्र से अंगुल का संखिज्जासंख्यातवां भाग देखे तो काल से भी अंगुल का संख्यातवां भाग देखे। अंगुल–यदि अंगुल प्रमाण देखे तो काल से प्रावलिश्रतो आवलिकाके अन्दर-अन्दर देखे । यदि काल से श्रावलिया--आवलिका को देखे तो क्षेत्र से पुहुत्तं-पृथक्त्व अंगुल-अंगुल को देखे ।
भावार्थ-क्षेत्र और काल के आश्रित-अवधिज्ञानी यदि क्षेत्र से अगुल-(उत्सेध या प्रमाणांगुल) के असंख्यातवें भाग को देखता है तो काल से भी आवलिका का असंख्यातवां भाग देखे । दोनों में ही अर्थात् यदि क्षेत्र से अंगुल के संख्यातवें भाग को देखता है तो