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________________ नन्दीसूत्रम् पदार्थ से किं तं श्रागामियं ओहिना ! - वह आनुगामिक अवधिज्ञान कितने प्रकार का होता है ? श्रागामियं श्रहिनाणं दुविहं - आनुगामिक अवधिज्ञान दो प्रकार का पण्णत्तं कहा गया है, तंजा - जैसे—अंतगयं च - अंतगत और मज्झगयं - मध्यगत च – समुच्चयार्थ से कि तं अंतगयं ! – अथ वह अन्तगत कितने प्रकार का हैं ? अंतगयं— अन्तगत, तिविह-तीन प्रकार का परणतं कहा गया है, तंजा-यथा पुरश्रो अंतगयं— आगे से अन्तगत, मग्गओ अंतगयं—पीछे से अन्तगत और पासो अंतगयं—दोनों पार्श्व से अन्तगत । ७५ से किं तं पुरो अंतगयं ? – आगे से अन्तगत किस प्रकार है ? पुरो अंतगमं - आगे से अन्तगत से - वह जहानामए - यथानामक केइ पुरिसे - कोई पुरुष उक्कं - उल्का वा वा शब्द सर्वत्र विकल्पार्थ है, अथवा चलियं वा- तृणपूलिका अलायं वा - काठ का जलता हुआ अग्रभाग, मणि वामणि, पई वाप्रदीप, जोइं वा - प्याले आदि में जलती हुई अग्नि को पुरओ कार्ड – आगे करके पखुल्लेमाणे २ - प्रेरणा करते हुए गच्छज्जा — चले, से तं पुरश्रो अंतगयं— उसे पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान कहा जाता है । से किं तं मग्गश्रो अंतगयं ? - वह मार्ग से अंतगत अवधिज्ञान किस प्रकार है ? मग्गश्रो अंतगयं— मार्ग से अंतगत से -- वह विवक्षित जहानामए - यथानाम केह पुरिसे—कोई पुरुष उक्कं वाउल्का अथवा चलियं वा -- अग्रभाग से जलती हुई तृणपूलिका, अथवा अलायं वा - अग्रभाग से जलता हुआ काठ, अथवा मणि वा-मणि, अथवा पईवं वा- प्रदीप, अथवा जोहं वा-ज्योति को मग्गश्रोमार्ग से कार्ड करके अणुक माणे २ - अनुकर्षन् करता हुआ गच्छिज्जा - जाये, से तं मग्गो अंतगयंइस प्रकार मार्ग से अन्तगत अवधिज्ञान को समझना चाहिए । से किं तं पास अंतयं ? - अथ वह दोनों पाश्वंगत अवधिज्ञान किस प्रकार से है ? पासो अंतगयं - पावों से अन्तगत अवधिज्ञान से जहानामए-- जैसे अमुक केइ पुरिसे कोई पुरुष उक्कं वाउल्का चडुलियं वा -- अग्रभाग से जलती हुई पूलिका अलायं वा अग्रभाग से जलता हुआ काष्ठ मि वा -- मणि, पईवं वा- प्रदीप, जोई वा अथवा ज्योति को पासो – पावों से अकड्डेमाणे २ - अनुकर्षन् करता हुआ गरिछज्जा - जाए, जैसे वह दोनों पावों में पदार्थों को देखता है, से तं पासनों अंतगयं— उसे पार्श्वगत अन्तगत अवधिज्ञान कहा है, से सं अंतगयं— इस प्रकार अन्तगत अवधिज्ञान का वर्णन किया गया है । से किं तं ममयं ? – वह मध्यगत अवधि क्या है ? मज्झगयं - मध्यगत से जहानामए - जैसे यथानामक केइ पुरिसे - कोई व्यक्ति उक्कं वा - उल्का को, चडुलियं वा - अथवा तृण की पूलिका को श्रलायं वा—-जलते हुए काष्ठ को, मणि वा- मणि को पईवं वा- प्रदीप को, अथवा जोई वा — ज्योति को मत्थए काउं— मस्तक पर रखकर समुन्वहमाणे २ - वहन करता हुआ गच्छिज्जा - जावे से तं मज्गयं - वह मध्यगत अवधिज्ञान है । भावार्थ - शिष्य ने पूछा - भगवन् ! वह आनुगामिक अवधिज्ञान कितने प्रकार का है ? गुरु ने उत्तर में कहा - हे भद्र ! आनुगामिक अवधिज्ञान दो प्रकार का है, जैसेअन्तगत और मध्यगत । शिष्य ने फिर पूछा- वह अन्तगत अवधिज्ञान कौन-सा है ?
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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