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________________ नन्दीसूत्रम् मूलम्-कालिय-सुय-अणुप्रोगस्स धारए, धारए य पुव्वाणं । हिमवंत-खमासमणे, वंदे णागज्जुणायरिए ॥३६॥ छाया-कालिक-श्रुताऽनुयोगस्य धारकान्, धारकांश्च पूर्वाणाम् । हिमवतः क्षमाश्रमणान्, वन्दे नागार्जुनाचार्यान् ॥३६॥ पदार्थ-पुनः कालिय-सुप-प्रमोगस्स-कालिक-श्रुत सम्बन्धी अनुयोग के धारए-धारक य-और पुष्वाणं-उत्पाद आदि पूर्वो के धारए-धारण करने वाले, ऐसे हिमवंत-खमासमणे-आचार्य हिमवान क्षमाश्रमण, के सहश णागडणायरिए-श्री नागार्जुन आचार्य को वंदे-नमस्कार करता हूं। भावार्थ-पुनः क्रमागत महापुरुषों की स्तुति करते हुए स्तुतिकार कहते हैं कि जो कालिक सूत्रों सम्बन्धी अनुयोग को धारण करने वाले थे और जो उत्पाद आदि पूर्वो के धर्ता थे, ऐसे विशिष्ट ज्ञानी हिमवन्त क्षमाश्रमण के सदृश श्रीनागार्जुनाचार्य को वन्दन करता हूँ। ___टीका--इस गाथा में आचार्यवर्य हिमवान के शिष्यरत्न, पूर्वधर श्रीसंघ के नेता आचार्य नागार्जुन का वर्णन है (२७) आचार्य नागार्जुन स्वयं कालिक श्रुतानुयोग के धारक थे तथा उत्पाद आदि पूर्वो के भी धारक थे । वे हिमवंत गुरु या पर्वत के तुल्य क्षमावान श्रमण थे । अत: स्तुतिकार ने उन्हें वन्दना की है। कुछ एक प्रकाशित और लिखित प्रतियों में इसी गाथा में हिमवान क्षमाश्रमण और नागार्जुन आचार्य दोनों, को वंदना की है । ऐसा लिखते हैं, परन्तु यह शैली हृदयंगम नहीं होती क्योंकि आचार्य हिमवान को तो ३८ वीं गाथा में स्तुतिकार वंदना कर चुके हैं, पुनः उन्हींको दूसरी गाथा में वन्दना करने का क्या अर्थ है ? इसका कोई उत्तर नहीं। वास्तव में 'हिमवंतवमासमणे' यह विशेशण नागार्जुन का ही है क्योंकि वे हिमवंत गुरु या . हिमवन्त पर्वत के तुल्य क्षमाश्रमण थे । यहाँ लुप्त उपमा अलंकार है। गाथा में जो "पुग्वाणं" यह पद दिया है, वह आगम में सर्वनाम इतर के प्रकरण में आता है, जैसे कि “पूर्वाणाम्" "जैनागमप्रसिद्धपूर्वशब्दस्य सर्वनामेतरस्य रूपम्" अन्यथा पूर्वेषाम्" ऐसा रूप बनना चाहिए था। मूलम्-मिउ-मद्दव-सम्पन्ने, आणुपुव्वि-वायगत्तणं पत्ते । अोह-सुय-समायारे, नागज्जुणवायए वंदे ॥४०॥ छाया-मृदु-मार्दव-सम्पन्नान्, आनुपूर्व्या वाचकत्वं प्राप्तान् । ओघ-श्रुत-समाचारान् (चारकान्), नागार्जुनवाचकान् वन्दे ।।४।। पदार्थ-मिउ-महव-सम्पन्ने-मृदु-मार्दव आदि भावों से सम्पन्न, पाणुपुग्वि-क्रम से वायगत्तणं
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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