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________________ नन्दीसूत्रम् गम्य सूत्रतः सकलमपि प्रवचनं दृब्धवन्तः, तच्च प्रवचनं सकल-सत्त्वानामुपकारकं विशेषत इदानीन्तनजनानाम् ।" इस वृत्ति का भाव यह है कि उत्पाद, व्यय और ध्रुव इन तीन पदों से अर्थों को जानकर सूत्र रूप से सकल प्रवचन की रचना की । वह प्रवचन आज पर्यन्त सांसारिक जीवों पर महान् उपकार कर रहा है। अतः गणधरदेव परोपकारी महापुरुष हुए हैं। वीर-शासन की महिमा मूलम्-निव्वुइ-पह-सासणयं, जयइ सया सव्व-भाव-देसणयं। कुसमय-मय-नासणयं, जिणिंदवर-वीर-सासणयं ॥२४॥ छाया-निर्वृत्ति-पथ-शासनकं, जयति सदा सर्वभावदेशनकं । कुसमय-मद-नाशनकं, जिनेन्द्र वर-वीर-शासनकम् ॥२४॥ पदार्थ-निव्वुइ-पह-सासणयं—निर्वाणपथका शासक, सवभाव-देसणयं-सर्वभावोंका प्ररूपक, कुसमय-मय-नासणयं—अन्ययूथिकों के मद को नष्ट करनेवाला जिणिंदवर-वीर-सासणयं--वीर जिनेन्द्रका श्रेष्ठ शासन, जयइ सया-सर्वदा सर्वोत्कृष्ट अतिशयवान है। भावार्थ:-सम्यग-दर्शन, ज्ञान और चारित्ररूप मोक्षपदका प्रदर्शक, जीव-अजीव आदि पदार्थों का प्रतिपादक, और कुदर्शन के अभिमान का मर्दक, जिनेन्द्र भगवान महावीर का शासन-प्रवचन सदा जयवन्त है । टीका-इस गाथामें जिन प्रवचन तथा जिन-शासनकी स्तुति की गई है, जैसे कि-१. वह जिनशासन निर्वृत्ति-पथका शासक है। शासन शब्दकी व्युत्पत्ति करते हुए आचार्य लिखते हैं-निवृत्ति-पथस्य शासनं, शिष्यतेऽनेनेति शासनम्-प्रतिपादकं निवृत्तिशासनम् । २. जिन प्रवचन सर्वभावों का प्रकाशक है, क्योंकि निर्मल स्वच्छ श्रुतज्ञान के प्रकाश से सर्व पदार्थ प्रकाशित हो रहे हैं। ३. यह जिनशासन कुसमयमद का नाशक है, जैसे सूर्य के प्रकाश से अन्धकार नष्ट हो जाता है, वैसे ही जिनशासन कुत्सित मान्यताओं का नाशक है । अतः यह शासन प्राणिमात्र का हितैषी होने से सदैव उपादेय है और मुमुक्षुओं के द्वारा ग्राह्य है, इसी कारण यह जिनशासन सर्वोत्कृष्ट है । जयति-क्रिया का अर्थ है--सर्वोत्कण वर्तते-जो विश्व में सर्वोपरि अतिशयवान हो, उसी के लिए 'जयति' का प्रयोग किया जाता है।
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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