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४४. जो भिक्षु पात्र को एक बंधन से बाँधता है अथवा बाँधने वाले का समर्थन करता है।
४५. जो भिक्षु पात्र को तीन बंधन से अधिक बाँधता है अथवा बाँधने वाले का समर्थन करता है। ४६. जो भिक्षु तीन से अधिक बंधन का पात्र डेढ़ मास से अधिक रखता है अथवा रखने वाले का समर्थन करता है। (उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त करना होता है ।)
41. The ascetic who patches the utensils once or supports the ones who patches so. 42. The ascetic who patches the utensils thrice or supports the ones who patches thrice. 43. The ascetic who ties the utensils carelessly or supports the ones who ties carelessly. 44. The ascetic who ties utensils once or supports the ones who ties so.
45. The ascetic who ties the utensils thrice or supports the ones who ties so.
46. The ascetic who keeps along with him the utensils which are tied thrice or supports the ones who does so, one month (Gurumasik) expiation comes to him.
विवेचन - थेगली - पात्र के टूटे भाग को ठीक करने के लिए अथवा छिद्र को बंद करने के लिए लगाई जाती है।
. ४१-४२ सूत्रों का संयुक्त अर्थ यह है कि साधु को पात्र में एक भी थेगली नहीं लगानी चाहिए। यदि अधिक आवश्यक हो तो एक पात्र के एक, दो या तीन थेगली तक लगाई जा सकती है। तीन से अधिक थेगली लगाना सर्वथा निषिद्ध है।
थेगली दो प्रकार की होती है- १. सजातीय, २. विजातीय। जिस जाति का पात्र हो उसी जाति की थेगली लगाना "सजातीय" और अन्य जाति की थेगली लगाना “विजातीय" है। यदि पात्र के थेगली लगाना जरूरी है तो सजातीय थेगली ही लगानी चाहिए, विजातीय नहीं । यह नियम लकड़ी, तुम्बा, मिट्टी आदि के पात्र से समझना चाहिए। लेकिन इसमें कपड़े का अथवा धागे का जो उपयोग किया जाता है वह सजातीय या विजातीय नहीं कहा जाता है तथा सेल्यूशन से जोड़ने को थेगली लगाना नहीं कहते हैं।
अविधि - सूत्र ४४-४५ में पात्र के बंधन का उल्लेख किया गया है अतः पात्र विषयक अविधि का कथन इन सूत्रों के बाद में होना चाहिए था लेकिन यहाँ ४३वें सूत्र में अविधि का यह विधानसूत्र ४१-४२ और ४४-४५ इन चारों सूत्र से सम्बन्धित है।
इसका भावार्थ यह है कि थेगली भी अविधि से नहीं लगानी चाहिए और बंधन भी अविधि से नहीं बाँधना
चाहिए ।
विधि एवं अविधि की व्याख्या
१.
बंधन, थेगली अथवा सिलाई आदि के बाद वह स्थान प्रतिलेखन करने योग्य हो जाना चाहिए।
२.
जहाँ बंधन, थेगली आदि लगाये गए हों, वहाँ से आहार आदि का अंश सरलता से साफ हो जाए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए ।
३. बंधन आदि लगाने का कार्य कम से कम समय में हो जाना चाहिए ।
उपरोक्त तथ्यों को विधि अथवा सववेक समझने चाहिए और इसके विपरीत अविधि समझना चाहिए। प्रथम उद्देशक
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First Lesson