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The laws of the fruits of the auspicious and inauspicious utensils are found in the commentary and Prakirana holy scripture Anangvijja.
The ascetic should seek such utensils in which any kind of repair or amendment is not required.
दंडादि के परिष्कार कराने का प्रायश्चित्त EXPIATION REGARDING THE AMENDMENT OF STAFF (DAND) ४०. जे भिक्खू दंडयं वा, लट्ठियं वा, अवलेहणियं वा, वेणुसूइयं वा, अण्णउत्थिएणं वा तर
गारथिएण वा परिघट्टावेइ वा, संठावेइ वा, जमावेइ वा, अलमप्पणो करणयाए सुहुमवि नो पर
कप्पड़, जाणमाणे सरमाणे अण्णमण्णस्स वियरइ, वियरंतं वा साइज्जइ। ४०. (यदि भिक्षु स्वयं करने में समर्थ हो तो थोड़ा-सा भी गृहस्थ से कार्य कराना नहीं कल्पता है। *
यह जानते हुए अथवा स्मृति में होते हुए अथवा करने में समर्थ होते हुए भी) जो भिक्षु दण्ड, रे लाठी, अवलेहनिका और बाँस की सूई का परिघट्टण, संठवण और जमावण अन्यमती अथवा रे गृहस्थ से करवाता है या अन्य साधु को करवाने की आज्ञा देता है या गृहस्थ से करवाने वाले घर
का या आज्ञा देने वाले का समर्थन करता है। (उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त करना होता है।) 40. (If the ascetic is physically fit or strong then even a little work is not desirable to be
got done by any householder. Also knowing it and being capable) the ascetic who gets repaired, amended and smoothed the staff stick Avalehanika and the needle of the bamboo by the householder or non-believer or any ascetic who says so or the one who gets the work done from any householder or supports the one who orders, (Gurumasik) one month expiation is propounded for him.
पात्रसंधान बंधन प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF REPAIRING AND TYING OF UTENSILS ४१. जे भिक्खू पायस्स एक्कं तुडियं तड्डेइ, तड्डेंतं वा साइज्जइ। ४२. जे भिक्खू पायस्स परं तिण्हंतुडियाणं तड्डेइ, तड्डेंतं वा साइज्जइ। ४३. जे भिक्खू पायं अविहीए बंधइ, बंधतं वा साइज्जइ। ४४. जे भिक्खू पायं एगेण बंधेण बंधइ बंधतं वा साइज्जइ। ४५. जे भिक्खू पायं परं तिण्हंबंधाणं बंधइ, बंधतं वा साइज्जइ। ४६. जे भिक्खू अइरेग बंधणं पायं, दिवड्ढाओ मासाओ परेण धरेइ, धरेंतं वा साइज्जइ। ४१. जो भिक्षु पात्र में एक थेगली लगाता है अथवा लगाने वाले का समर्थन करता है।
४२. जो भिक्षु पात्र में तीन थेगली से अधिक लगाता है अथवा लगाने वाले का समर्थन करता है। र ४३. जो भिक्षु पात्र को अविधि से बाँधता है अथवा बाँधने वाले का समर्थन करता है।
| निशीथ सूत्र
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Nishith Sutra