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अविधि से लौटाने का प्रायश्चित्त
ATONEMENT OF RETURNING THE OBJECTS IN AN IM-PROPER MANNER
३५. जे भिक्खू सूइं अविहीए पच्चप्पिणेइ, पच्चप्पिणेंतं वा साइज्जइ । ३६. जे भिक्खू पिप्पलगं अविहीए पच्चप्पिणेइ, पच्चप्पिणेंतं वा साइज्जइ । ३७. जे भिक्खू णहच्छेयणगं अविहीए पच्चप्पिणेइ, पच्चप्पिणेंतं वा साइज्जइ । ३८. जे भिक्खू कण्णसोहणगं अविहीए पच्चप्पिणेड़, पच्चप्पिणेंतं वा साइज्जइ । ३५. जो भिक्षु अविधि से सूई लौटाता है अथवा लौटाने वाले का समर्थन करता है। ३६. जो भिक्षु अविधि से कैंची लौटाता है अथवा लौटाने वाले का समर्थन करता है। ३७. जो भिक्षु अविधि से नखछेदनक लौटाता है अथवा लौटाने वाले का समर्थन करता है।
३८. जो भिक्षु अविधि से कर्णशोधनक लौटाता है अथवा लौटाने वाले का समर्थन करता है। (उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त का विधान है। )
35. The ascetic who returns the needle in an improper manner or supports the one who
returns so.
36. The ascetic who returns the scissors in an improper manner or supports the one who returns so.
37. The ascetic who returns the nail cutter in an improper manner or supports the one who returns so.
38. The ascetic who returns the ear bud in an improper manner or supports the one who returns so. (one month gurumasik expiation comes to here)
पात्र - परिष्कार कराने का प्रायश्चित्त
ATONEMENT OF AMENDING THE UTENSILS
३९. जे भिक्खू लाउयपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिघट्टावेइवा, , संठावेइ वा, जमावे वा, "अलमप्पणी करणयाए सुहुमवि नो कप्पइ", जाणमा सरमाणे अण्णमण्णस्स वियरड़, वियरंतं वा साइज्जइ ।
३९. जो भिक्षु तुम्बे, लकड़ी व मिट्टी के पात्र अन्य तीर्थिका अथवा गृहस्थ से बनवाता है, उसका मुँह सही करवाता है, टेढ़े-मेढ़े को समतल करवाता अथवा अन्य साधु को कराने की आज्ञा देता है या कराने वाले का अथवा आज्ञा देने वाले का समर्थन करता है । ( उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त का विधान होता है | )
39. The ascetic who gets, the utensils of wood clay and hollow out gourd, made by a householder or non-believer, gets its mouth repaired, gets made smooth its crooked surface or supports some one who gets it done or orders to get it made, comes under (Gurumasik) atonement for a month period.
निशीथ सूत्र
(14)
Nishith Sutra