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घर 75. The ascetic who relieves theexcreta and urine at bull stable, bulls enclosure,Mahakul
or big house or supports the ones who does so, a laghu-chaumasi expiation comes to him. .
विवेचन-इन नौ सूत्रों में 46 स्थानों का कथन है। इन स्थानों में कुछ स्थान व्यक्तिगत हैं और कुछ र सार्वजनिक स्थान हैं। इन स्थानों के स्वामी या रक्षक भी होते हैं। ऐसे स्थानों में मल-मूत्र त्यागने का सर्वथा ।
निषेध होता है। इसलिए ऐसे स्थानों में मल-मूत्र त्यागने से भिक्षु के तीसरे महाव्रत में दोष लगता है और जानकारी घरे होने पर उस साधु की असभ्यता एवं मूर्खता प्रगट होती है, साथ ही समस्त साधुओं एवं संघ की निंदा होती है। किसी। जरे के कुपित होने पर उस साधु के साथ अनेक प्रकार के अशिष्ट व्यवहार भी हो सकते हैं। अत: भिक्षु को सूत्रोक्त घार स्थानों पर मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।
Comments—In these above mentioned nine sutras forty six sites are discussed. Out of these sites some are individual and some are public places. Either the owner or the custodian of these sites have been mentioned. To urinate or discarding excreta at such a sites is absolutely prohibited. Hence the fault of third full vow of ascetic afflicts by relieving excreta and urine at such a places. Moreover, even the uncivilised state of the ascetic is manifested, and as well, the criticism of the whole ascetics organisation takes place, any body may misbehave with the ascetic.
Therefore, the ascetic must not discard excreta and urine at above mentioned sites. गृहस्थ को आहार देने का प्रायश्चित्त
THE REPENTANCE OF OFFERING THE FOOD TO THE HOUSEHOLDER 176. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा, गारत्थियस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देइ, १ देंतं वा साइज्जइ। 2 76. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को अशन, पान, खादिम या स्वादिम देता है अथवा देने वाले
का समर्थन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायिश्चत्त आता है।) The ascetic who offers the food, water, sweets and the tasty items to a householder or non-believer or supports the ones who offer so a laghu-chaumasi expiation comes to him:
विवेचन-किसी भी गृहस्थ को या उपाश्रय में बैठे हुए सामायिक व्रतधारी श्रावक को आहार देना भिक्षु को नहीं कल्पता है, क्योंकि उसके सावध योग का सम्पूर्ण त्याग नहीं होता है। सामायिक के समय भी वाणिज्य एवं खेती
आदि के सभी सावध कार्य उसके स्वामित्व में ही होते रहते हैं। अतः किसी भी गृहस्थ को अशनादि देने पर सूत्रोक्त परे प्रायश्चित्त आता है।
___ आहार देने वाला गृहस्थ संयम साधना में सहयोग करने के लिए ही भिक्षु को भावपूर्वक आहार देता है। * इसलिए वह आहार अन्य किसी को देने पर जिनाज्ञा एवं गृहस्थ की आज्ञा न होने से तीसरा महाव्रत दूषित होता है।
आहार दाता गृहस्थ को यह ज्ञात हो जाए कि मेरा दिया हुआ आहार साधु ने अमुक को दिया है तो उसकी र साधुओं के प्रति अश्रद्धा होती है और दान भावना में भी कमी आ जाती है।
पन्द्रहवाँ उद्देशक
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Fifteenth Lesson