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ग्यारहवाँ उद्देशक THE ELEVENTH CHAPTER
जितना सरलततिरतरतरतरतर मारना
सारे प्राथमिकी INTRODUCTION र इस उद्देशक के प्रारम्भ में श्रमण को लोहे, ताँबे, शीशे, सींग, चर्म वस्त्र के पात्र रखने व उसमें र आहार करने आदि के निषेध के बारे में चर्चा की गई है। जो साधक धर्म की निंदा व अधर्म की
प्रशंसा करता है, गृहस्थ के शरीर का परिकर्म करता है, स्वयं को अथवा अन्य को डराता है या र विस्मृत करता है, अन्य धर्म प्रमुख के सिद्धान्तों व आचारों की मिथ्या प्रशंसा करता है, दो विरोधी कर राज्य के मध्य बार-बार गमनागमन करता है, दिवस भोजन की निंदा व रात्रि भोजन की प्रशंसा
करता है, अयोग्य व्यक्तियों को दीक्षा देता है, अयोग्य से सेवा कराता है, चूर्ण नमक आदि रात्रि में स रखता है, आत्मघात करने वाले की प्रशंसा आदि करता है उसको गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। स In the chapter, discussing in respect of prohibition of having the "Patras” made
of steel, copper, lead, horn and leather clothes and enjoying its food has been stated. The practiser who denounces or praises this religion and irreligion respectively, washes the body of a householder, frightens himself in others or astonishes also. Admires arrogantly the conduct and principles of others religion, travels frequently in two hostile, states, criticizes the day time food and praises the night food, initiates the incapable one, gets services of unworthy keeps salt powder at night and admires the one who commits suicide, Guru Chaumasi comes to him. निषिद्ध पात्रग्रहण-धारण-प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF ACCEPTING AND KEEPING THE PROHIBITED UTENSILS 1. जे भिक्खू 1. अय-पायाणि वा, 2. तंब-पायाणि वा, 3. तउय-पायाणिवा, 4. सीसग-पायाणि
वा, 5. हिरण्ण-पायाणि वा, 6. सुवण्ण-पायाणि वा,7.रीरिय-पायाणि वा, 8. हारपुड-पायाणि वा, 9. मणि-पायाणि वा, 10. काय-पायाणि वा, 11. कंस-पायाणि वा, 12. संख-पायाणि वा, 13. सिंग-पायाणि वा, 14. दंत-पायाणि वा, 15. चेल-पायाणि वा, 16. सेल-पायाणि वा, 17. चम्म-पायाणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ।
जे भिक्खू अय-पायाणि वा जाव चम्म-पायाणि वा धरेइ, धरेंतं वा साइज्जइ। 33. जे भिक्खू अय-बंधणाणि वा जाव चम्म-बंधणाणि वा (पायाणि) करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। १- 4. जे भिक्खू अय-बंधणाणि वा जाव चम्म-बंधणाणि वा (पायाणि) धरेइ,धरेंतं वा साइज्जइ। पर 1. जो भिक्षु लोहे के पात्र, ताँबे के पात्र, राँगे के पात्र, शीशे के पात्र, चाँदी के पात्र, सोने के पात्र,
पीतल के पात्र, मुक्ता आदि रत्न जड़ित लोहे आदि के पात्र, मणि के पात्र, काँच के पात्र, काँसे
ग्यारहवाँ उद्देशक
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Eleventh Lesson