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________________ पर्युषण के दिन बाल रहने देने का और आहार करने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF TAKING THE FOOD AND NOT TONSURING THE FULL HEAD BEFORE THE PARYUSHANA DAY 38. जे भिक्खू पज्जोसवणाए गोलोमाइं पि बालाई उवाइणावेइ, उवाइणावेंतं वा साइज्जइ । 39. जे भिक्खू पज्जोसवणाए इत्तरियं पि आहारं आहारेइ आहारेंतं वा साइज्जइ । 38. जो भिक्षु पर्युषण (संवत्सरी) के दिन गाय के रोम जितने बालों को रखता है अथवा रखने वाले का समर्थन करता है । 39. जो भिक्षु पर्युषण (संवत्सरी) के दिन थोड़ा भी आहार करता है अथवा करने वाले का समर्थन करता है। उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। ) 38. The ascetic who keeps the hair equal to the pores of a cow on the Paryushana day or supports the one who keeps so. 39. The ascetic who on Paryashun day takes food even in a little quantity or supports the ones who does so, a guru-chaumasi expiation comes to him. विवेचन - पर्युषण सम्बन्धी भिक्षु के कर्तव्य 1. वर्षावास योग्य क्षेत्र न मिलने पर यदि चातुर्मास की स्थापना न की हो तो इस दिन चातुर्मास निश्चित्त कर देना चाहिए। 2. ऋतुबद्ध काल के लिए ग्रहण किए गए शय्या, संस्तारक की चातुर्मास - समाप्ति तक रखने की पुनः याचना न की हो तो इस दिन अवश्य कर लेनी चाहिए। 3. सिर या दाढ़ी-मूँछ के गो-रोम जितने बाल भी हो गए हों तो उनका लोच अवश्य कर लेना चाहिए क्योंकि गो-रोम जितने बालों को पकड़कर लोच किया जा सकता है। 4. संवत्सरी के दिन चारों आहारों का पूर्ण त्याग करना चाहिए अर्थात् चौविहार उपवास करना चाहिए। इन कर्तव्यों का पालन न करने पर भिक्षु प्रायश्चित्त का पात्र होता है। इनका पालन करना ही पर्युषण करना कहा जाता है। इसके अतिरिक्त वर्ष भर की संयम आराधना- विराधना का चिन्तन कर हानि-लाभ का अवलोकन करना, आलोचना, प्रतिक्रमण व क्षमापना आदि कर आत्मा को शांत व स्वस्थ करके वर्धमान परिणाम रखना आदि विशिष्ट धर्म- जागरणा करने के लिए यह पर्युषण का दिन हैं। कर्तव्यों का पालन करने पर ही आत्मा के लिए इसी दिन का महत्व है। आगम में इसी दिन के लिए "पर्युषण" शब्द प्रयोग किया गया है। श्वेताम्बर परम्परा में साधना के सात दिन युक्त आठवें दिन को पर्युषण कहा जाता है और अंतिम आठवें दिन को "संवत्सरी” कहा जाता है। किन्तु वास्तव में संवत्सरी का दिन ही आगमोक्त पर्युषण दिन है। शेष दिन पर्युषण की भूमिका रूप है। दिगम्बर परम्परा में पर्युषण के दिन से बाद में 10 दिन तक धर्म आराधना करने की परिपाटी है । कालान्तर से दसवें दिन (अनंत चतुर्दशी को) संवत्सरी पर्व का आराधन किया जाने लगा है। Comments-The duties of an ascetic pertaining to Paryushana festival. 1. Over not availability of the place to stay for Chaturmas if arrangement has not been made for Chatrumasik stay then one should make arrangement for Chaturmasik stay on that particular day. निशीथ सूत्र (186) Nishith Sutra
SR No.002486
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2015
Total Pages452
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size20 MB
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