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र राजा का दानपिंड-ग्रहण प्रायश्चित्त
THE ATONEMENT OF ACCEPTING THE FOOD PREPARED FOR CHARITY BY THE KING 46. जे भिक्खूरण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं, 1. दुवारिय-भत्तंवा, 2. पसु-भत्तं वा, ____3. भयग-भत्तं वा, 4. बल-भत्तं वा, 5. कयग-भत्तं वा, 6. हय-भत्तं वा, 7. गय-भत्तं वा,
8. कंतार-भत्तं वा, 9. दुब्भिक्ख-भत्तं वा, 10. दुकाल-भत्तं वा, 11. दमग-भत्तं वा, 12. गिलाण-भत्तंवा, 13. बद्दलिया-भत्तं वा, 14. पाहुण-भत्तं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। जो भिक्षु शुद्धवंशज मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा के-1. द्वारपालों के निमित्त बना भोजन, 2. पशुओं के निमित्त बना भोजन, 3. नौकरों के निमित्त बना भोजन, 4. सैनिकों के निमित्त बना भोजन, 5. दासों या कर्मचारियों के निमित्त बना भोजन, 6. घोड़ों के निमित्त बना भोजन, 7. हाथी के निमित्त बना भोजन, 8. अटवी के यात्रियों के निमित्त बना भोजन, 9. दुर्भिक्ष-पीड़ितों के लिए दिया जाने वाला भोजन, 10. दुष्काल-पीड़ितों के लिए दिया जाने वाला भोजन, 11. दीन जनों के निमित्त बना भोजन, 12. रोगियों के निमित्त बना भोजन, 13. वर्षा से पीड़ित जनों के निमित्त बना भोजन, 14. आगंतुकों के निमित्त बना भोजन ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का
समर्थन करता है। (उसे गुरूचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) 6. In case of properly anointed King, the monk who accepts: (1) Food made for
gatekeeper. (2) Food prepared for cattle. (3) Food prepared for servants. (4) Food prepared for troops. (5) Food prepared for the slaves or personnel. (6) Food prepared for horses. (7) Food prepared for elephants. (8) Food prepared for the travellers of wild region. (9) Food prepared for famine sufferers. (10) Food prepared for the draught sufferers. (11) The food prepared for dejected. (12) The food prepared for ailing persons. (13) The food prepared for sufferer of flood. (14) One who accepts the food prepared for guests, or supports the ones who accepts so, a guru-chaumasi
repentance come to him. राजा के कोठार आदि स्थानों को जाने बिना भिक्षागमन का प्रायश्चित्त THE REPENTANCE OF GOING FOR SEEKING FOOD WITHOUT KNOWING THE STORES OF KING 7. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं इमाइं छद्दोसाययणाई
अजाणिय-अपुच्छिय-अगवेसिय परं चउराय-पंचरायाओ गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए णिक्खमइ वा पविसइ वा णिक्खमंतं वा पविसंतंवा साइज्जइ,तंजहा-1. कोट्ठागार-सालाणि वा, 2. भंडागार-सालाणि वा, 3. पाण-सालाणि वा,4. खीर-सालाणि वा, 5. गंज-सालाणि
वा, 6. महाणस-सालाणि वा।। 7. जो भिक्षु शुद्धवंशज मूर्धाभिषित क्षत्रिय राजा के इन छह दोषस्थानों की 4-6 दिन के भीतर
जानकारी किए बिना, पूछताछ किए बिना व गवेषणा किए बिना गाथापति कुलों में आहार के
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नवम उद्देशक
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Nineth Lesson