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विवेचन-साधु-साध्वियाँ एषणा के सभी दोष टालकर प्राप्त किए गए निर्दोष पानी का ही उपयोग करते हैं। आगमों में ऐसे पानी को अचित्त एषणीय या प्रासक कहा गया है। साधारण भाषा में धोवन पानी, गरम पानी या प्रासुक पानी भी कहते हैं।
प्रस्तुत सूत्र में दो विशेष शब्द हैं- 1. पुष्फं, 2. कसायं।
जिस पानी का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श प्रशस्त हो तो वह यहाँ पुष्प संज्ञा और जिस पानी का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श अप्रशस्त हो तो वह यहाँ कषाय संज्ञा है। रसासक्ति से मनोज्ञ पानी पी लेना और अमनोज्ञ पानी परठ देने AK पर लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।
Comments—The ascetic consumes only the faultless water accepted by faultless & methods.
In the holy scriptures such a water is called non-living water or pure water. In common language in which anything has been washed, and the hot and prashuk water.
Two special words are mentioned here in this present sutra: 1. Puppham. 2. Kasayam.
If the colour, odour, taste and touch of such water is right it is named as Pupph and if the colour, odour, taste and touch of such water is not right it is called "Kasayam." To drink tasty water and discard non-tasty water, out of infatuation for tasty things, attracts laghu-maasik (brief-monthly) atonement. मनोज्ञ भोजन खाने और अमनोज परठने का प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF EATING THE DELICIOUS FOOD AND THROWING AWAY THE NON-TASTY FOOD 44. जे भिक्खू अण्णयरं भोयणजायं पडिगाहित्ता सुब्भि सुभि भुंजइ, दुभि दुभि परिट्ठवेइ,
परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 8 44. जो भिक्षु विविध प्रकार का आहार ग्रहण करके सरस-सरस खाता है और नीरस-नीरस परठता है
अथवा परठने वाले का समर्थन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) 44. The ascetic who eats delicious food from the miscellaneous food and throws away
the un-delicious one or supports the ones who throws so, a laghu-masik expiation comes to him.
विवेचन-पिछले सूत्र की तरह इस सूत्र में भी आगमिक शैली से 'सुब्भि दुभि' शब्द का प्रयोग है। 8 चूर्णि में सुब्भि-सुभं, दुभि-असुभं अर्थ किया है। भाष्य गाथा में
वण्णेण य गंधेण य, रसेण फासेण जंतु उववेतं।
तं भोयणं तु सुब्भि, तव्विवरीयं भवे दुभि॥ ___ वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से युक्त आहार को 'सुब्भि' समझना और इससे विपरीत वर्ण, गंध, रस, स्पर्श से रे हीन आहार को 'दुभि' समझना चाहिए।
1. पुष्फं-अच्छं-वण्णगंधरसोपपेतं-पहाणं-सुभि-शुभं-भद्दगं-मणुण्णं।
| द्वितीय उद्देशक
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Second Lesson