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हाँ, एक बात निर्विवाद है कि नवकार अपना अस्तित्व बनाए हुए है । एक मात्र नवकार गिनने वालों से, रटने से, स्मरण करने से, जाप या ध्यान अथवा आराधना से टिका है, वह भी गिनने से टिका है, अतः सोचो कि हमारे अग्रजों पूर्वजों पिता पितामहों और प्रपितामहों सभी ने सतत इस नवकार महमंत्र की आराधना उपासना की होगी, और परम्परागतरीति से करते करवाते रहे होंगे, तभी तो हम तक आज यह नवकार पहुँचा है, जन्म के पश्चात् बाल्यावस्था में ही माता-पिता ने हमें नवकार सिखाया, है, हम इसकी आराधना करते ही आए हैं, अतः एक बात तो निश्चित् है कि नवकार तो आराधना उपासना करने से ही टिकने वाला है । अतः हमें इसी मार्ग पर चलना उचित है । हम भी इस मार्ग पर अपना अमूल्य योगदान दें, और इसमें अभिमान न करके अपना कर्तव्य समझे तभी हमें लाभ हैं; क्यों कि हमसे नवकार धर्म का उद्धार नहीं, बल्कि इसके विपरीत नवकार धर्म से हमारा उद्धार अथवा कल्याण है । जो प्रयत्न हमारे पूर्वजों ने किया है, वही प्रयत्न हमें भी करना पड़ेगा । ऐसा प्रयत्न बड़ा ही सरल है । मात्र पंच परमेष्ठियों को नमस्कार करना - यह बात जितनी बड़ी और गंभीर लगती है, उतनी ही बात प्रयत्न से सरल और सुगम है । मात्र अरिहंतादि पंच परमेष्ठिओं को नमस्कार करना है ।
नमस्कार धर्म :
नवकार महामंत्र में सर्व प्रथम 'नमस्कार' का महत्व बताया गया है । अरिहंत सिद्धादि धर्म नहीं - वे तो महान् धर्मी हैं, मात्र उन्हें नमस्कार करना धर्म है, अतः इस महामंत्र का नामकरण भी नमस्कार महामंत्र हुआ है । जगत में नमस्कार का ही व्यवहार बड़ा है और धर्म भी नमस्कार का ही बड़ा है । सर्व प्रथम नमस्कार तत्पश्चात् अन्य बात ! अतः हमारे लिये तो कुछ भी करने का नहीं रहता, मात्र नमस्कार करना ही रहता है । इस नमस्कार धर्म के सूचक शब्द 'नमो' के हैं जो बार बार नवकार में प्रयुक्त हुए हैं ।
नवकार का नामकरण :
इस जगत में प्रत्येक वस्तु का नामकरण होता है। ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है, जिसका नाम न हो । और न कोई ऐसा नाम है जिसकी वस्तु न हो। संसार का
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