________________
यह नियम है । वस्तु हो और नाम न हो यह कैसे हो सकता है ? इसका व्यवहार कैसे चल सकता है ? हमने जन्म लिया अतः हमारा नाम रखा गया, अन्यथा हमें संबोधित करने आदि का व्यवहार कैसे होता ? और नामकरण भी जन्मराशि, नक्षत्र आदि के आधार पर माता-पिता ने किया है, अतः इन नामों से दुनिया में अपना व्यवहार चल रहा है, परन्तु नवकार का नाम क्या रखा जाए ? क्यों कि नवकार कोई राशि या नक्षत्र में तो न जन्मा है न बना है । इसका रचनाकाल भी नहीं - फिर प्रश्न ही कहाँ होता है ? अतः नवकार के नामकरण की प्रणाली भिन्न है । अपने यहाँ नामकरण की दो पद्धतियाँ चलती है ।
नामकरण
(१) आद्याक्षरी (आद्य शब्दानुसारी)
(२) विषयानुसारी
ही ये सूत्र प्रारंभ होते
सुविधा रहे - इस हेतु
(१) आद्याक्षरी - आद्यशब्दानुसारी अर्थात् जिस सूत्र का जो प्रथम आद्य शब्द हो उसके आधार पर नामकरण करना आद्यशब्दानुसारी कहलाता है । उदाहरणार्थ 'नमुत्थुणं सूत्र', 'लोगस्स सूत्र' सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र, इसी प्रकार नवकार मंत्र । इन सभी सूत्रों में नमुत्थुणं, लोगस्स, आदि प्रथम- आद्य शब्द हैं, अतः इन शब्दों से ही इनके नाम हो गए । इन शब्दों से हैं, अतः लोगों की सामान्य स्मरणशक्ति में सरलता और से ये नाम सरल रहते हैं, किसी को भी कहें भाई ! लोगस्स सूत्र बोलो, नमुत्थुणं बोलो कि वह तुरन्त ही लोगस्स उज्जोअगरे । नमुत्थुणं अरिहंताणं - से शरु करके बोलने लग जाता है । अतः स्मरण शक्ति को याद रखने में सरलता रहने से व्यवहार में यह पद्धति प्रचलित हो गई है । इस पद्धति के अनुसार नवकार का नाम ' णमोकार मंत्र' या ' णमोकारसूत्र' पड़ा । ' णमो' प्रथम शब्द है अतः इसके आधार पर ' णमोकार सूत्र' नाम हो गया तथा प्रचलित भी हो गया ।
.
-
(२) विषयानुसारी - दूसरी पद्धति है विषयानुसारी ! इस पद्धति के सूत्र में जो मुख्य विषय होता है तदनुसार नामकरण होता है, उदाहरणार्थ नामस्तव, श्रुतस्तव, सिद्धस्तव, शक्रस्तव आदि । अब यदि ये नाम लेकर हम किसी को कहें कि भाई ! शक्रस्तव सूत्र बोलो । नामस्तव सूत्र बोलो, तो प्रारंभ में तो वह
76