________________
आए हैं, धर्म करके ही जिन्होंने धर्म को टिकाए रखा है, और उन्ही के कुल-गोत्र में हमने जन्म लिया है जो हमारा प्रबल पुण्य है कि जिसके योग से हम ऐसे उच्च कुल में आए हैं, फिर भी यदि हमने धर्म न किया - अपना कर्तव्य समझकर भी यदि धर्म से विमुख रहें, तो इसका परिणाम क्या होगा ? एक तो हम स्वंय धर्म से वंचित रहेंगे और साथ ही हम अपनी भावी पीढ़ी को भी धर्म से वंचित रखेंगे। इसके अलावा धर्म को टिकाने में हमारा कुछ भी योगदान नहीं रहेगा और जिस धर्म करके हमारे अग्रजों ने टिकाए रखा है - बनाए रखा है उस धर्म को न करके हम मिटा देंगे। अतः धर्म भावी में सदा सुरक्षित रहे बना रहे - आगे भी सबको प्राप्त होता रहे इस हेतु से भी धर्म करना आवश्यक है । धर्म के प्रति यदि हम अपना कर्तव्य भी समझ लें तो बहुत ही अच्छा होगा । अतीत में इतने अधिक हजारों लाखों लोगों ने धर्म की सुरक्षा और विकास के लिये अपना जो अमूल्य योगदान किया है और जो धर्म आज हमें प्राप्त हुआ है उसमें हमारा कितना और क्या योगदान रहा - यह विचारणीय बिन्दु है । क्या हमारा कुछ भी कर्तव्य नहीं है? धर्म से पुण्योपार्जन करके हम यहाँ तक पहुँचे - ऊपर चढ़े और अब इसी धर्म के प्रति क्या हमारा कुछ भी कर्तव्य नहीं रहता ? धर्म के साथ ऐसा विश्वासघात करते हैं तो हमारा उद्धार कैसे होगा ? इस हेतु से भी उपेक्षा करना न्यायोचित नहीं है । धर्म के क्षेत्र में नियम ऐसा है कि 'धर्मो रक्षति रक्षितः' अर्थात् जो धर्म की रक्षा करता है उसकी धर्म भी रक्षा करता है । धर्म हमारी रक्षा धर्म करे - ऐसा हम चाहते हैं, परन्तु क्या यह क्षम्य है कि हम धर्मकी रक्षा न करें ? ऐसी एक पक्षीय स्वार्थी विचारणा कैसे चल सकती हैं ? बिल्कुल नहीं चल सकती ।
नवकार किस प्रकार टिका है ?
ऊपर जिस प्रकार हमने धर्म की चर्चा की वैसी ही विचारणा हम अब नवकार महामंत्र के संबंध में करते हैं, क्यों कि नमस्कार एक धर्म है, और ऐसा नमस्कार प्रधान धर्म टिका है तो कैसे टिका ? क्या नवकार महामंत्र दीवार पर लिखकर रखनने से टिका ? क्या यह ताम्रपत्र पर लिखकर भूमिगतग करने से टिका नहीं, पत्थर पर खुदाई कर लिख रखने से भी यह महा मंत्र नहीं टिका, न यह पुस्तकों में लिखकर रखने से टिका है । यह तो यदि टिक पाया है तो एक मात्र गिनते रहने और गिनाते रहने से ही टिका है । इसकी आराधना उपासना अविरत
73