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________________ जब कि अजीव-जड़ पदार्थ ज्ञानादि भाव से रहित है, अतः उसमें भावुकता होने का प्रश्न ही नहीं उठता, क्यों कि नमस्कार ज्ञानादि गुणों से संयुक्त है - संलग्न है। नमस्कार में आत्मा के ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि भाव कार्य करते हैं, अतः नमस्कार ज्ञानादि गुणों का समूहात्मक स्वरुप है । यह भावनाओं में से निर्मित है । आत्मा के ज्ञानादि गुण तो एक-एक स्वतंत्र गुण हैं । ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा अनंतवीर्य आत्मा के प्रत्येक स्वतंत्र भिन्न भिन्न गुण हैं, यद्यपि सभी मिलकर संयुक्त रूप से आत्मा के साथ आत्मभाव में रहे हुए हैं, जब कि नमस्कार तो एक ऐसा गुण है जिस में ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप-वीर्यादि सभी गुणों का समावेश हो जाता है । नमस्कार इन सबसे निर्मित है, इन सभी का सामूहिक - संयुक्त रुप है । नमस्कार ज्ञान प्रधान है, ज्ञान युक्त है, दर्शन युक्त है, चारित्र योग में स्थित है, इसका अस्तित्व तपोवृत्ति में भी है तथा इसे वीर्य गुणयुक्त भी माना है । पंचाचारमय नमस्कार गुणों का आचरण ही धर्म है | ज्ञान-दर्शन-चारित्रादि पाँचों ही आत्मा के मूलभूत गुण हैं, जो अनंत स्वरुप में आत्मा के साथ संकलित है । ये ही गुण जब तक संबंधित कर्म से आच्छादित रहते हैं, तब तक प्रच्छन्न भाव में हैं, परन्तु उनका अस्तित्व तो है ही ... नहीं है ऐसा तो नहीं है - इनके होने में तनिक भी शंका नहीं है, क्यों कि आत्म गुणों की क्रिया लोकव्यवहार में दृष्टिगोचर होती है - प्रत्यक्षानुभूत है । उदाहरण के लिये ज्ञान गुण की क्रिया जानना समजना, हेयज्ञेयादि का विवेक करना आदि ज्ञान की क्रियाएँ हैं । बोलना, देखना, पाँचो ही ईन्द्रियों का व्यवहार दर्शनगुण पर आधारित है । जानना और देखना दोनों ही स्वतंत्र क्रियाएँ हैं, अतः ज्ञान और दर्शन भी स्वतंत्र गुण हैं । चारित्र स्वस्वरुप की साधना के रुप में है । आत्मा स्वस्वरुप में है । अनंत काल व्यतीत हो गया । काल के. भयंकर थपेड़ो में भी जीव जड़ नहीं बना । अनेक भयंकर कर्मों का बंधन किया और उनका क्षय किया, आए और गए, परन्तु आत्मा की स्वरुपावस्था में कुछ भी अन्तर नहीं आया । इसका चारित्रगुण यथावत है । इसके आधार पर स्वरमणता का आचरण होता है । स्वस्वरुप की स्वभावावस्था में जाने की क्रिया प्रधान है । व्रत, विरति, नियम अथवा पच्चक्खाण भी अन्ततः तो आत्मा को आत्मभाव स्वभाव में ले जाते हैं,
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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